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विभाजित है। इसकी कथा का आधार श्रीमद् भागवत है। इस खंडकाव्य के रचयिता भी रामपाणिवाद हैं। यह कंसवध के पहले की रचना है। यह एक सरस प्रेमकाव्य है, जिसमें बाणासुर की कन्या उषा तथा श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के प्रणय एवं विवाह की घटना का काव्यात्मक वर्णन हुआ है। बाण की कन्या ऊषा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से प्रेम करती है। बाण को जब यह मालूम होता है तो वह अनिरुद्ध को जेल में डाल देता है। श्रीकृष्ण अपने पौत्र को छुड़ाने के लिए बाण से युद्ध करते हैं । पराजित होकर बाण अपनी कन्या का विवाह अनिरुद्ध से कर देते हैं । अन्तिम सर्ग में उषा एवं अनिरुद्ध को देखने आने वाली नारियों की विचित्र मनोदशा का काव्यात्मक वर्णन हुआ है। प्रणयकथा की प्रधानता होने के कारण शृंगार रस इस काव्य का प्रमुख रस है । नायक-नायिका दोनों के ही चरित्रचित्रण में प्रणय-तत्त्व को प्रमुखता दी गई है। शृंगार रस के साथ-साथ युद्ध आदि प्रसंग में वीर रस की भी सुन्दर अभिव्यंजना हुई है। काव्य-तत्त्वों की दृष्टि से यह . समृद्ध रचना है । घटनाओं का विन्यास क्रम सुनियोजित है । उत्प्रेक्षा, रूपक, काव्यलिंग, अलंकारों का सुन्दर नियशेषन हुआ है। इस खण्डकाव्य पर कर्पूरमंजरी • तथा अन्य संस्कृत काव्यों का प्रभाव परिलक्षित होता है ।
62. औपपातिक सूत्र (उववाइयं)
औपपातिकसूत्र अर्धमागधी जैन वाड्मय का प्रथम उपांग है। इसके दो अध्ययन हैं - समवसरण एवं उपपात । अभयदेवसूरि ने वृत्ति में लिखा है कि उपपात अर्थात् देव और नारकियों के जन्म या सिद्धिगमन का वर्णन होने से प्रस्तुत आगम का नाम औपपातिक है। इसमें विभिन्न सम्प्रदायों के तापसों, परिव्राजकों, श्रमणों आदि को उनकी साधनाओं के द्वारा प्राप्त होने वाले भवान्तरों का मार्मिक वर्णन हुआ है। इस ग्रन्थ में एक ओर जहाँ धार्मिक एवं दार्शनिक विवेचन मिलते हैं, वहीं दूसरी ओर राजनैतिक, सामाजिक तथा नागरिक तथ्यों की चर्चा भी हुई है। यह आगम वर्णन प्रधान शैली में रचित है। चम्पा नगरी, वनखण्ड, चैत्य, राजा, रानी आदि के वर्णनों की दृष्टि से यह अन्य आगमों के लिए सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में जाना जाता है। जिन विषयों का इसमें विवेचन है, वह सम्पूर्णता के साथ है। इसमें भगवान् महावीर के
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