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________________ होकर अपने जीवन को सार्थक कर दिया। अतः इसका नाम उपासकदशांग सार्थक प्रतीत होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में एक श्रुतस्कन्ध व दस अध्ययन हैं। इन दस अध्ययनों में क्रमशः आनंद, कामदेव, चुलणीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकोलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनीपिता और जोलिनीपिता श्रमणोपासकों के कथानक हैं। उपासकदशांग में वर्णित ये दसों उपासक विभिन्न जाति और विभिन्न व्यवसाय करने वाले थे। इनके कथानकों द्वारा जैन गृहस्थों के द्वारा पालनीय धार्मिक नियम समझाये गये हैं। इनकी जीवनचर्या के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है कि धर्म का पालन करने में अनेक विघ्न एवं प्रलोभन सामने आते हैं, लेकिन श्रावक जीवन में रहकर भी परीषहों को सहन कर विभिन्न साधनाएँ की जा सकती हैं। अंगसूत्र में यह एक मात्र सूत्र है, जिसमें सम्पूर्णतया श्रावकाचार का निरूपण हुआ है। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ आचारांग का पूरक है, क्योंकि आचारांग में मुनिधर्म का विस्तृत वर्णन हुआ है और इसमें श्रावकधर्म का विस्तार से निरूपण किया गया है। 60. उपासकाध्ययन-उपासयाज्झयण प्राकृत गाथाओं द्वारा आचार्य वसुनन्दि ने उपासयाज्झयण (उपासकाध्ययनं). ग्रन्थ में श्रावकधर्म का विस्तृत निरूपण किया है। इसमें 546 गाथाएँ हैं। आचार्य ने ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति में बताया है कि कुन्दकुन्दानाय में श्रीनन्दि, नयनन्दि, नेमिचन्द और वसुनन्दि हुए। वसुनन्दि के गुरु नेमिचन्द्र हैं, इन्हीं के प्रसाद से आचार्य परम्परागत प्राप्त उपासकाध्ययन को वात्सल्य और आदरभाव से भव्य जीवों के कल्याण हेतु रचा है। इस ग्रन्थ के रचनाकाल का निश्चित पता नहीं है, पर इतना निश्चित है कि पंडित आशाधर जी के ये पूर्ववर्ती हैं। आशाधर जी ने सागारधर्मामृत की टीका में वसुनन्दि का स्पष्ट उल्लेख किया है। अतः इनका समय ई. 1239 के पहले है। यह ग्रन्थ सन् 1952 ई. में भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से प्रकाशित है। 61. उषानिरुद्ध (उसाणिरुद्धो) उषाणिरुद्ध प्राकृत का सरस खंडकाव्य है। इस काव्य की कथा चार सर्ग में 400 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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