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________________ 4001 गाथाओं में समाप्त हुआ है। सुरसुन्दरी कुशलाग्रपुर के राजा नरवाहनदत्त की पुत्री थी। वह नाना विद्याओं में निष्णात थी। चित्र देखने से उसे हस्तिनापुर के मकरकेतु नामक राजकुमार से आसक्ति हो गई थी। उसकी सखी प्रियंवदा मकरकेतु की तलाश में निकलती है। बड़ी कठिनाईयों और नाना घटनाओं के पश्चात् सुरसुन्दरी और मकरकेतु का पुनर्मिलन और विवाह हुआ। पश्चात् संसारसुख भोग दोनों ने दीक्षा ले तपस्या कर मोक्षपद पाया। ___ इस कथा की नायिका सुरसुन्दरी का नाम व वृत्तान्त वास्तव में 11वें परिच्छेद से प्रारम्भ होता है। इससे पूर्व मकरकेतु के माता पिता अमरकेतु ओर कमलावती का तथा उस नगर के सेठ धनदत्त का घटनापूर्ण वृतान्त और कुशलाग्रपुर के सेठ की पुत्री श्रीदत्ता से विवाह उसी घटनाचक्र के बीच विद्याधर चित्र वेग और कनकमाला तथा चित्रगति और प्रियसुंदरी के प्रेमाख्यान वर्णित हैं। इसके प्रणेता धनेश्वरसूरि हैं जो जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे। ग्रन्थान्त में 13 गाथाओं की एक प्रशस्ति में ग्रन्थकार का परिचय, रचना का स्थान तथा काल का निर्देश किया गया है। तदनुसार यह कथाकाव्य चड्डावल्लिपुरी (चन्द्रवती) में सं. 1095 की भाद्रपद कृष्ण द्वितीया गुरुवार घनिष्ठा नक्षत्र में बनाया गया। इस महत्त्वपूर्ण चरित-काव्य के रचियता धनेश्वरसूरि ने ग्रन्थ के अन्त में जो प्रशस्ति लिखी है, उसमें बतलाया है कि महावीर स्वामी के शिष्य सुधर्म स्वामी, सुधर्म स्वामी के शिष्य जम्बू स्वामी, उनके शिष्य प्रभव स्वामी, प्रभव स्वामी के शिष्य वज्र स्वामी, इसके शिष्य जिनेश्वरसूरि, जिनेश्वरसूरि के शिष्य अल्लकोपाध्याय उद्द्योतनसूरि, इनके वर्धमानसूरि और वर्धमानसूरि के दो शिष्य हुए -जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि । यही जिनेश्वरसूरि धनेश्वरसूरि के गुरु थे। जिनेश्वरसूरि ने लीलावती नाम की प्रेम-कथा लिखी है। धनेश्वर नाम के कई सूरि हुए है। ये किस गच्छ के थे, इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। ____नायिका के नाम पर ही काव्य का नामकरण किया गया है। नायिका के चरित का विकास दिखलाने के लिए कवि ने मूलकथा के साथ प्रासंगिक कथाओं का गुम्फन घटना परिकलन के कौशल का द्योतक है। परिस्थिति विशेष में प्राकृत रत्नाकर 0369
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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