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________________ दी गयी हैं जिनसे तत्कालीन बुद्धिवैभव, कलाकौशल, आचार-व्यवहार, सामाजिक रीतिरिवाज, राजकीय परिस्थिति एवं नैतिक जीवन आदि के चित्र प्रस्तुत किये गये हैं। इसके प्रणेता का नाम लक्ष्मणगणि है। इनके गुरु का नाम हेमचन्द्रसूरि था जो हर्षपुरीयगच्छ के थे और जयसिंहसूरि के प्रशिष्य और अभयदेवसूरि के शिष्य थे। इस ग्रन्थ की रचना उनने धंधुकनगर में प्रारम्भ की थी और उसकी समाप्ति मंडलपुरी में की। उन्होंने इसे वि.सं. 1199 में माघ शुक्ल 10 गुरूवार के दिन रचकर समाप्त किया था। उस वर्ष चौलुक्य नृप कुमारपाल का राज्याभिषेक भी हुआ था। इस पद्यबद्ध चरितकाव्य में काव्य के नायक सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ का जीवन-चरित वर्णित है। सम्पूर्ण काव्य तीन प्रस्तावों में है। प्रथम प्रस्ताव में नायक के पूर्वभवों का तथा शेष प्रस्तावों में वर्तमान भव की घटनाओं का उल्लेख है। इस चरितकाव्य का मूल संदेश यही है कि अनेक जन्मों में संयम एंव सदाचार का पालन करने से ही व्यक्ति चरित्र का विकास कर मुक्ति पथ की ओर अग्रसर होता है। मूल कथा के साथ अवान्तर कथाएँ भी धर्मतत्त्व का ही प्रणयन करती है। इन कथाओं के माध्यम से श्रावक के 12 व्रतों एवं उनके अतिचारों का विवेचन किया गया है। सम्यक्त्व की महत्ता के लिए 'चम्पकमाला' की रोचक कथा वर्णित है। इस चरितकाव्य में सांस्कृतिक तत्त्व भी प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं। जैन धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों के साथ-साथ कापालिक, वेदान्त एवं संन्यासी मत के आचार एवं सिद्धान्तों का भी इसमें निरूपण हुआ है। भीमकुमार की कथा में नरमुण्ड की माला धारण किये हुए कापालिक का वर्णन सजीव है। इसी प्रसंग में नरमुण्डों से मंडित कालीदेवी का भी भयंकर रूप चित्रित हुआ है। इस चरितकाव्य की भाषा पर अपभ्रंश का पूरा प्रभाव दिखाई पड़ता है। इस चरित काव्य के नायक सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ है। लगभग आठ हजार गाथाओं में इस ग्रन्थ की समाप्ति की गयी है। समस्त काव्य तीन भागों में विभक्त है -पूर्वभव प्रस्ताव में सुपार्श्वनाथ के पूर्वभवों का वर्णन किया है और शेष प्रस्तावों में उनके वर्तमान जीवन का। इस चरितकाव्य में प्रेम, आश्चर्य, प्राकृत रत्नाकर 0367
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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