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________________ (1) आर्ष प्राकृत (2) शिलालेखी प्राकृत (3) निया प्राकृत (4) प्राकृत धम्मपद की भाषा और (5) अश्वघोष के नाटकों की प्राकृत। प्रथम युग की इस प्राकृत का सबसे प्राचीन लिखित रूप शिलालेखी प्राकृत में मिलता है। किन्तु शिलालेख लिखे जाने के पूर्व ही बुद्ध महावीर ने अपने उपदेशों में जनभाषा प्राकृत का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया, जिसका आगम साहित्य के रूप में संकलन एवं लेखन परम्परा द्वारा बाद में किया गया है। आगमों की इस प्राकृत को पालि, शौरसेनी, अर्धमागधी नाम से जाना गया है। अतः रचना की दृष्टि से पालि, शौरसेनी एवं अर्धमागधी आगमिक प्राकृत को शिलालेखी प्राकृत से प्राचीन स्वीकार किया जा सकता है। 408. शृंगारप्रकाश - शृंगारप्रकाश भी भोजराज द्वारा रचित अलंकारशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में 36 प्रकाश हैं, जिसमें से 26वाँ प्रकाश लुप्त है। कवि भोजराज ने शृंगार रस को सभी रसों में प्रधान रस स्वीकार किया है। ग्रन्थ में शृंगार रस प्रधान प्राकृत पद्यों का विशेष उल्लेख किया गया है। 409. श्रृंगारमंजरी-सिंगारमंजरी (सट्टक) शृंगारमंजरी के कर्ता कवि विश्वेश्वर पंडित का समय लगभग 17वीं18वीं शताब्दी का माना जाता है। शृंगारमंजरी सट्टक का साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। चार जवनिकाओं में राजा राजशेखर एवं नायिका शृंगारमंजरी की प्रणय कथा वर्णित है। इसकी कथावस्तु अत्यंत रोचक है। इसका आधार यद्यपि राजशेखर की कर्पूरमंजरी है, किन्तु कथानक गठन, घटना-विन्यास एवं वर्णनों में मौलिकता है। राजा द्वारा स्वप्न में शृंगारमंजरी को देखना, दासी द्वारा चित्र बनवाना, नायिका द्वारा आत्महत्या का प्रयास आदि घटनाएँ मौलिक हैं। वसंत, संध्या, कुंज, रात्रि, चन्द्रोदय आदि के वर्णन विशद एवं काव्यात्मक सौन्दर्य से अभिभूत हैं। शिल्प पुरातन होते हुए भी चरित्र-चित्रण एवं संवाद की दृष्टि से यह एक उत्तम कोटि रत्नाकर1349
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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