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________________ दर्शन के प्रायः सभी सिद्धान्तों का विवेचन अपने इस ग्रन्थ में कर दिया है। ग्रन्थ के विषय के प्रस्तुतिकरण के अनुसार शिवार्य एकतपस्वी साधु के रूप में रहे होंगे। उन्होंने समाधिमरण की पूरी प्रक्रिया का प्रत्यक्ष प्रयोग भी कराया होगा। जैन दर्शन के अध्येता के साथ-साथ शिवार्य प्राकृत भाषा के निष्णात विद्वान थे। उन्होंने इस ग्रन्थ में शौरसैनी प्राकृत के प्राचीन स्वरूप को सुरक्षित रखा है। ग्रन्थ की अनेक गाथाओं से यह भी स्पष्ट है कि शिवार्य कवि हृदय थे और अच्छे कथाकार भी थे। उन्होंने अपने इस ग्रन्थ में अनेक काव्यात्मक दृष्टान्तों और कथाओं का उल्लेख किया है। इसी प्रकार शिवार्य अपने समय की संस्कृति और समाज के भी पूर्ण जानकार थे, जिसका प्रमाण उनके इस ग्रन्थ में अनेक जगह उपलब्ध होता है। 400. शीलांकाचार्य (अपरनाम तत्वाचार्य) वी.नि. की 14वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और पन्द्रहवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध के बीच की अवधि के आचार्य शीलांक का नाम देवर्द्धि क्षमाश्रमण से उत्तरवर्ती काल के आगम मर्मज्ञ आचार्यों में शीर्ष स्थान पर आता है। वे तत्वाचार्य नाम से भी विख्यात रहे। प्रभावक चरित्र में उनका एक और नाम कोटयाचार्य भी दिया है। वे संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं के उच्च कोटि के विशिष्ट विद्वान थे। अपने समय में शीलांकाचार्य आगमों के अधिकारी प्रमाणिक विद्वान माने जाते थे। गूढार्थों एवं अनेकार्थों से युक्त दुरूह आगमों को साधक एवं जिज्ञासु आसानी से समझकर हृदयंगम कर सकें इसके लिए इन्होंने टीकाएँ लिखी हैं। शीलांकाचार्य द्वारा रचित उन 11 अंगशास्त्रों की टीकाओं में से वर्तमान में केवल आचारांग और सूत्रकृतांग, ये दो टीकाएँ ही उपलब्ध होती हैं। 401. शीलांक या सीलंक, ____ 'चउप्पन्नमहापुरिसचरियं' चरित ग्रन्थ के रचयिता ने अपनी पहचान तीन नामों से दी है - 1. शीलांक या सीलंक, 2. विमलमति और 3. सीलारिय। ग्रन्थ के अन्त में पाँच गाथाओं की एक प्रशस्ति दी गई है उससे ज्ञात होता है कि ये निर्वृत्ति कुल के आचार्य मानदेवसूरि के शिष्य थे। लगता है आचार्य पद प्राप्त करने के पूर्व और उसके बाद ग्रन्थकार का नाम क्रमशः विमलमति और शीलाचार्य रहा 344 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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