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________________ हो सकती है । ग्रन्थ का अन्तरंग अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि आराधना के 40वें विजहना नामक अधिकार में आराधक मुनियों के मृतक संस्कार वर्णित हैं, उनके ग्रन्थ की प्राचीनता पर प्रकाश पड़ता है। इसके अनुसार उस समय मुनि के मृतक शरीर को वन में किसी अच्छी जगह पर यों ही छोड़ दिया जाता था और पशु पक्षी उसे समाप्त कर देते थे T भगवती आराधना ग्रन्थ पर अपराजितसूरि द्वारा विचरित 'विजयोदया ' नामक संस्कृत टीका उपलब्ध है। इस टीका से भी इस ग्रन्थ की प्राचीनता प्रकट होती है। अन्य टीका-टिप्पणियों से यह अवगत होता है कि इस ग्रन्थ पर प्राकृत टीकाएँ भी उपलब्ध थीं। प्राकृत ग्रन्थों की प्राकृत भाषा में टीका लिखने की परम्परा पाँचवी एवं छठी शताब्दी तक ही मिलती है । अतः भगवती आराधना का समय प्राकृत टीका लिखे जाने के पूर्व 5वीं शताब्दी के पहले होना चाहिये । आचार्य शिवार्य आराधना के अतिरिक्त तत्कालीन स्वसमय और परसमय भी ज्ञाता थे। उन्होंने अपने विषय का उपस्थितिकरण काव्यशैली में किया है। आगम सिद्धान्त के साथ नीति, सदाचार एवं प्रचलित परम्पराओं से सुपरिचित थे। आचार्य ने जीवन के अनेक चित्रों के रंग, नाना अनुभूतियों के माध्यम से प्रस्तुत किये हैं । भगवती आराधना के रचयिता आचार्य शिवार्य दिगम्बर जैन परम्परा के पोषक आचार्य हैं। उन्होंने इस ग्रन्थ में अनेक स्थानों पर अचेल तत्त्व की प्रतिष्ठा की है। अतः शिवार्य श्रमण परम्परा में साधु के नियमों का कठोरता से पालन करने के पक्ष में रहे हैं। उनके ग्रन्थ से यह स्पष्ट होता है कि शिवार्य श्रमण जीवन का सार अन्तिम समय में समाधिमरण को मानने वाले हैं। उनकी दृष्टि से चारित्र का पालन जीवन का प्रमुख लक्ष्य रहा है इसलिये उन्होंने आराधना के चार भेदों में चारित्र आराधना को सर्वश्रेष्ठ माना है। उस में सभी आराधनाओं को सम्मिलित माना है। शिवार्य जैन दर्शन के बहुश्रुत विद्वान थे। उनके एक मात्र ग्रन्थ भगवती आराधना का प्रमुख विषय यद्यपि समाधिमरण है किन्तु प्रसंगवश उन्होंने जैन प्राकृत रत्नाकर 0 343
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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