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________________ तथा वादिचक्रवर्ती के रूप में प्रसिद्ध थे। कवि धनपाल के अनुरोध पर शान्तिसूरि मालव में भी पहुँचे थे तथा भोजराज की सभा के 84 वादियों को पराजित कर 84 लाख रुपये प्राप्त किये थे। अपनी सभा के पंडितों के लिए शान्तिसूरि को वेताल के समान समझ राजा भोज ने उन्हें वादिवेताल की पदवी प्रदान की थी। इन्होंने महाकवि धनपाल की तिलकमंजरी का भी संशोधन किया था। शान्तिसूरि अपने अन्तिम दिनों में गिरनार में रहे एवं वहाँ 25 दिन का अनशन अर्थात् संथारा किया तथा वि.सं. 1096 की ज्येष्ठ शुक्ला नवमीं को स्वर्गवासी हुए। वादिवेताल शान्तिसूरि ने उत्तराध्ययन टीका के अतिरिक्त कवि धनपाल की तिलकमंजरी पर भी एक टिप्पण लिखा है। जीवविचारप्रकरण और चैत्यवंदन-महाभाष्य भी इन्हीं की कृतियाँ मानी जाती हैं। वादिवेताल शान्तिसूरिकृत उत्तराध्ययन-टीका शिष्यहितावृत्ति कहलाती है। यह पाइअ-टीका के नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें प्राकृत कथानकों एवं उद्धरणों की प्रचुरता है। टीका, भाषा शैली आदि सभी दृष्टियों से सफल है। इसमें मूल-सूत्र एवं नियुक्ति का व्याख्यान है। बीच-बीच में यत्र-तत्र भाष्य गाथाएँ भी उद्धृत हैं। अनेक स्थानों पर पाठान्तर भी दिये गये हैं। 395. शास्त्री नेमिचन्द (डॉ.) डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री संस्कृत, प्राकृत एवं ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान् थे। आपका जन्म धौलपुर जिले आगरा के बसई धियारम गांव में 1922 ई. में हुआ था। आपके पिता का इनके बचपन में ही निधन हो गया था। माता जी ने इनको आगे बढ़ाया। आपकी शिक्षा राजाखेड़ा और बनारस में हुई। आपने संस्कृत, हिन्दी और प्राकृत एवं जैनशास्त्र में एम. ए. किया था तथा 1962 में आपने पीएच.डी., 1967 में डी. लिट् की उपाधियाँ प्राप्त की थीं। डॉ. शास्त्री 1940 ई. से आरा (बिहार) में आ गये थे। वहाँ पर आप एच.डी.जैन कॉलेज में संस्कृत-प्राकृत विभाग के प्राध्यापक एवं अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे। 10 जनवरी 1974 ई. में असमय ही आपका निधन हो गया लेकिन इतने अल्पकाल में ही शास्त्री जी ने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का लेखन और सम्पादन कार्य किया है। आपकी 30 पुस्तकें और सैकड़ों शोधलेख प्रकाशित हैं। उनमें प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, संस्कृत काव्य के 338 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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