SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विकास में जैन कवियों का योगदान, हरिभद्र के प्राकृत कथासाहित्य का परिशीलन, तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (चार भाग) आदि बहुचर्चित पुस्तकें हैं। भारतीय ज्योतिष' नामक आपकी पुस्तक के दर्जनों संस्करण निकल चुके हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने प्राकृत भाषा के शिक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए बहुत काम किया है। बिहार में सैकड़ों प्राकृत के विद्यार्थी आपने तैयार किये हैं। अभिनव प्राकृत व्याकरण, प्राकृत प्रबोध, हेमशब्दानुशासन- एक अध्ययन आदि आपकी लोकप्रिय प्राकृत पुस्तकें रही हैं। आप अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं। जैन समाज के विकास में डॉ. शास्त्री जी का अपूर्ण योगदान रहा है। देवकुमार ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, आरा के आप निदेशक रहे हैं। 396. शास्त्री फूलचन्द (पण्डित) पं. फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री जैन आगमों एवं सिद्धान्त के प्रकाण्ड पण्डित थे। प्राकृत ग्रन्थों के सम्पादन-अनुवाद में आपने महनीय सेवा की है। पं. जी का जन्म 11 अप्रेल सन् 1901 में उत्तरप्रदेश के सिलावन गांव में हआ था। आपने इन्दौर और मुरैना में शिक्षा प्राप्त की। पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री और पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री के साथ आपकी साहित्य साधना की अटूट मैत्री थी। आप तीनों को जैनसिद्धान्त के रत्नत्रयी पण्डित के नाम से जाना जाता है। आपने सन् 1937से 1940 तक डॉ. हीरालाल जैन के साथ अमरावती में रहकर षट्खण्डागम के सम्पादन-कार्य में सहयोग किया। आपने प्राकृत के कषायपाहुड ग्रन्थ का टीका के साथ 1-16 भागों का सम्पादन एवं अनुवाद कार्य किया है। स्वतन्त्ररूप से भी पण्डित जी के कई ग्रन्थ प्रकाशित हैं। आपको ‘सिद्धान्ताचार्य' सिद्धान्तरत्न जैसी उपाधि प्राप्त हुई। 1990 में राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन बैंगलोर में पण्डित जी को प्राकृतज्ञान भारती अवार्ड भी प्रदान किया गया। 31 अगस्त 1991 को पण्डित जी का देहावसान हुआ। जैनधर्म एवं साहित्य में आपका अपूर्व योगदान रहा है। 397. शास्त्री बालचन्द ( पण्डित) पं. बालचन्द शास्त्री जैन सिद्धान्त और प्राकृत भाषा के प्रकाण्ड पण्डित थे। आपका जन्म 1905 ई. में ललितपुर जिले के सोरई ग्राम में हुआ था। आपकी शिक्षा बनारस के स्याद्वाद महाविद्यालय में सम्पन्न हुई। पं. शास्त्री जी ने प्राकृत के प्राकृत रत्नाकर 0 339
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy