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________________ किया गया है। प्रथम नियम में प्राकृत के समस्त छंदों के नाम गिनाये हैं, जिन्हें आगे के नियम में समझाया है। तीसरे नियम में 52 प्रकार के द्विपदी छंदों का विवेचन है। चौथे नियम में 26 प्रकार के गाथा छंद तथा पाँचवें नियम में 50 प्रकार के संस्कृत के वर्ण छंदों का निरूपण किया गया है। छठे नियम में प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट आदि छः प्रत्ययों का वर्णन है। 393. शांतिसूरि (पाइअटीका) शान्तिसूरि एक प्रतिभासम्पन्न आचार्य थे। उनका जन्म राधनपुर के सन्निकटउण उन्नतायु गाँव में हुआ था। गृहस्थाश्रम में इनका नाम भीम था। इन्होंने विजयसिंहसूरि जो थारापद गच्छीय थे उनके पास दीक्षा ग्रहण की। पाटण के राजा भमराव की सभा में ये कवि तथा वादिचक्रवर्ती के रूप में विख्यात थे। महाकवि धनपाल के अत्याग्रह पर महाराजा भोज की सभा में भी गये थे और वहाँ पर 84 वादियों को पराजित किया था जिससे राजा भोज ने उन्हें वादिवेताल की उपाधि से समलंकृत किया। उन्होंने महाकवि धनपाल की तिलकमंजरी का संशोधन किया था, अन्त में विक्रम संवत् 10096 में 25 दिन के अनशन के पश्चात् समाधिपूर्वक गिरनार पर स्वर्गस्थ हुए। शान्तिसूरि ने तिलकमंजरी पर एक टिप्पण लिखा था। जीव-विचार प्रकरण, चैत्य वन्दन महाभाष्य और उत्तराध्ययनवृत्ति इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ मानी जाती हैं। उत्तराध्ययन टीका नाम शिष्यहितावृत्ति माना जाता है। इसका अपरनाम पाइअटीका भी है क्योंकि इस टीका में प्राकृत की कथाओं का उद्धरणों की अत्यधिक बहुलता है। टीका मूल सूत्र व नियुक्ति इन दोनों पर है। टीका भाषा व शैली की दृष्टि से मधुर व सरस है। विषय की पुष्टि के लिए भाष्यगाथाएँ भी प्रयुक्त हुई हैं। पाठान्तर भी दिये गये हैं। 394. शान्तिसूरि वादिवेताल वादिवेताल शान्तिसूरि का जन्म राधनपुर के पास उण-उन्नतायु नामक गाँव में हुआ था। इनका बाल्यावस्था का नाम भीम था। इन्होंने थारपपद्रगच्छीय विजयसिंहसूरि से दीक्षा ग्रहण की थी। पाटन के भीमराज की सभा में ये कवीन्द्र प्राकृत रत्नाकर 0 337
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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