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________________ विभिन्न ऐतिहासिक व्यक्ति एवं घटनाओं का विस्तार से विवेचन है। इस अपेक्षा से यह ग्रन्थ प्राचीन जैन तत्त्व ज्ञान का विश्वकोश भी कहा जाता है। अन्य आगमों की अपेक्षा इसकी विषय-वस्तु बहुत अधिक विशाल है। ज्ञान की कोई ऐसी धारा नहीं, जिसका प्रवाह इसमें न हुआ हो। जीव-अजीव, लोक- अलोक, स्वसमयपरसमय आदि समस्त विषय इसमें समाहित हैं । जनमानस में इस आगम के प्रति विशेष श्रद्धा होने के कारण इसका दूसरा नाम भगवती अधिक प्रचलित है। प्रश्नोत्तर शैली में निबद्ध इस ग्रन्थ में प्रायः प्रश्नों का उत्तर देने में अनेकांतवाद एवं स्याद्वाद का सहारा लिया गया है। प्रश्नों को कतिपय खंडों में विभक्त कर उत्तर दिया गया है। यथा - - गौतम - भन्ते, जीव सकम्प है या निष्कंप? भगवान् महावीर - गौतम, जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी । गौतम - इसका क्या कारण? भगवान् महावीर - जीव दो प्रकार के हैं- संसारी और मुक्त। मुक्त जीव के दो प्रकार हैं - अनन्तरसिद्ध और परम्परसिद्ध । परम्परसिद्ध तो निष्कम्प हैं और अनन्तरसिद्ध सकंप | संसारी जीवों के भी दो प्रकार हैं - शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक शैलेशीप्रतिपन्नक जीव निष्कम्प होते हैं और अशैलेशीप्रतिपन्नक सकम्प होते हैं। (25.4.81) प्राकृत कथा ग्रन्थ की दृष्टि से जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त अनेकान्तवाद, नयवाद, स्याद्वाद एवं सप्तभंगी का प्रारंभिक स्वरूप भी इस ग्रन्थ में सुरक्षित है। 392. वृतजातिसमुच्चय इसके रचयिता विरहांक नामक कवि संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के प्रकाण्ड पण्डित थे। इनका समय ई. सन् की छठी शताब्दी है । यह छंद-ग्रन्थ पद्यबद्ध है। छः नियमों (अध्यायों) में विभक्त इस ग्रन्थ में मात्रा छंद तथा वर्ण छंद पर विचार प्राकृत के रूप में जाना गया। यज्ञीय संस्कृति को उन्होंने अस्वीकार किया। उदीच्या से पूर्व की जनभाषा प्राकृत भले भिन्न रही हो, किन्तु उसमें लोकभाषा के 336 [ प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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