SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एवं आधुनिक भारतीय भाषाओं के साथ उसके सम्बन्धों को पूर्णतया स्पष्ट कर दिया। टेस्सिटरी के इन लेखों के अनुवादक डॉ. नामवर सिंह एवं डॉ. सुनीतिकुमार चाटुा इन लेखों को आधुनिक भारतीय भाषाओं और अपभ्रंश को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में स्वीकार करते हैं। इस बात की पुष्टि डॉ. गियसन द्वारा अपभ्रंश के क्षेत्र में किये गये कार्यों से हुई है। डॉ. ग्रियर्सन ने लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया के प्रथम भाग में अपभ्रंश पर विशेष विचार किया है। 1913 ई. में ग्रियर्सन ने मार्कण्डेय के अनुसार अपभ्रंश भाषा के स्वरूप पर विचार प्रस्तुत करते हुए एक लेख प्रकाशित किया। 1922 ई. में द अपभ्रंश स्तवकाज आफ रामशर्मन नामका आपका एक और लेख प्रकाश में आया। इसी वर्ष अपभ्रंश पर आप स्वतन्त्र रूप से भी लिखते रहे। बीसवीं शताब्दी के तृतीय एवं चतुर्थ दशक में अपभ्रंश पर और भी निबन्ध प्रकाश में आये। हर्मन जैकोबी का जूर फ्राग नाक डेम उसस्प्रगप्स अपभंश एस स्मिथ का देजी दुतीय अपभ्रंश आ पाली तथा लुडविग आल्सडोर्फ ने अपभ्रंश स्टडियन नाम से स्वतन्त्र ग्रन्थ ही लिपजिंग से प्रकाशित किया, जो अपभ्रंश पर अब तक हुए कार्यों का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। 1939 ई. में लुइगा नित्ति डोलची के द अपभ्रंश स्तवकाज आफ रामशर्मन से ज्ञात होता है कि अपभ्रंश कृतियों के फ्रेंच में अनुवाद भी होने लगे थे। नित्ति डोलची ने अपभ्रंश एवं प्राकृत पर स्वतन्त्र रूप से अध्ययन ही नहीं किया, अपितु पिशेल जैसे प्राकृत भाषा के मनीषी की स्थापनाओं की समीक्षा भी की है। ____ सन् 1950 के बाद अपभ्रंश साहित्य की अनेक कृतियाँ प्रकाश में आने लगीं। अतः उनके सम्पादन और अध्ययन में भी प्रगति हुई। भारतीय विद्वानों ने इस अवधि में प्राकृत-अपभ्रंश पर पर्याप्त अध्ययन प्रस्तुत किया है। विदेशी विद्वानों में डॉ. के. डी. वीस एवं आल्सडोर्फ के नाम उल्लेखनीय हैं। के. डी. वीस ने 1954 ई. में अपभ्रंश स्टडीज नामक दो निबन्ध प्रस्तुत किये। द्रविड़ भाषा और अपभ्रंश का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उन्होंने ए दाविडियन ईडियम इन अपभ्रंश नामक दो निबन्ध तथा अपभ्रंश स्टडीज का तीसरा और चौथा निबन्ध 1959-61 के बीच प्रकाशित किये। प्राकृत रत्नाकर 0321
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy