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संस्कृत नाटकों की प्राकृत का अध्ययन प्रस्तुत किया जो सन् 1875 ई. में लन्दन से ए शार्ट इंट्रोडक्शन टु द आर्डनरी प्राकृत आवद संस्कृत ड्रामाज विदए लिस्ट आव कामन इरैगुलर प्राकृत वर्डस के नाम से प्रकाशित हुआ। इस सम्बन्ध में ई म्यूलर की वाइवेगे त्सूर ग्रामाटीक डेस जैन प्राकृत (बर्लिन, 1875 ई.) नामक रचना भी प्राकृत भाषा पर प्रकाश डालती है। सम्भतः प्राकृत व्याकरण के मूलग्रन्थ का अंग्रेजी संस्करण सर्वप्रथम डॉ. रुडोल्फ हार्नल ने किया। उनका यह ग्रन्थ द्र प्राकृत लक्षणम् आफ चन्द्राज ग्रेमर आफ द एन्शियेंट प्राकृत 1880 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। 376.विदेशों में अपभ्रंश भाषा का अध्ययन :
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक प्राकृत और अपभ्रंश में कोई विशेष भेद नहीं माना जाता था। किन्तु पाश्चात्य विद्वानों की खोज एवं अपभ्रंश साहित्य के प्रकाश में आने से अब ये दोनों भाषाएँ स्वतन्त्र रूप से अस्तित्व में आ गई हैं और उन पर अलग अलग अध्ययन अनुसन्धान होने लगा है। रिचर्ड पिशेल ने प्राकृत व्याकरण के साथ अपभ्रंश भाषा के स्वरूप आदि का भी अध्ययन प्रस्तुत किया। 1880 ई. में उन्होंने देशीनाममाला का सम्पादन कर उसे प्रकाशित कराया जिसमें यह प्रतिपादित किया गया हैं कि अपभ्रंश भाषा जनता की भाषा थी और उसमें साहित्य भी रचा जाता था। आपके मत का लास्सन ने भी समर्थन किया। 1902 ई. में पिशल द्वारा लिखित माटेरिआलिसन ल्सुर डेस अपभ्रंश पुस्तक बर्लिन से प्रकाशित हुई, जिसमें स्वतन्त्र रूप से अपभ्रंश का विवेचन किया गया।
जिस प्रकार प्राकृत भाषा के अध्ययन का सूत्रपात करने वाले रिचर्ड पिशेल थे, उसी प्रकार अपभ्रंश के ग्रन्थों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने वाले विद्वान् डॉ. हर्मन जैकोबी थे। 1914 ई. में जैकोबी को भारत के ग्रन्थ-भण्डारों में खोज करते हुए अहमदाबाद में अपभ्रंश का प्रसिद्ध ग्रन्थ भविसयत्तकहा प्राप्त हुआ तथा राजकोट में नेमिनाथचरित की पाण्डुलिपि मिली। जैकोबी ने इन दोनों ग्रन्थों का सम्पादन कर अपनी भूमिका के साथ इन्हें प्रकाशित किया। तभी से अपभ्रंश भाषा के अध्ययन में भी गतिशीलता आयी।अपभ्रंश का सम्बन्ध आधुनिक भाषाओं के साथ स्पष्ट होने लगा। ___ अपभ्रंश भाषा के तीसरे विदेशी अन्वेषक मनीषी डॉ. एल. पी. टेस्सिटरी हैं, जिन्होंने राजस्थानी और गुजराती भाषा का अध्ययन अपभ्रंश के सन्दर्भ में किया है। सन् 1914 से 1916 ई. तक आपके विद्वत्तापूर्ण लेखों ने अपभ्रंश के स्वरूप 3200 प्राकृत रत्नाकर