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________________ भाषा एवं जैनधर्म के सम्बन्ध में कुछ निबन्ध लिखे। तथा 1897 ई. में लन्दन के जे. जे. फल्ग ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक शार्ट स्टडीज इन ए साइन्स आव कम्पेरेटिव रिलिजन्स में शिलालेखों में उत्कीर्ण प्राकृत भाषा का उल्लेख किया। इस प्रकार प्राकृत भाषा एवं जैनधर्म के अध्ययन के प्रति पाश्चात्य विद्वानों के रुचि लेना प्रारम्भ किया, जो आगामी अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका थी। पाश्चात्य विद्वानों ने जैनविद्या के अध्ययन का प्रारम्भ प्राकृत भाषा के तुलनात्मक अध्ययन से किया। कुछ विद्वानों ने संस्कृत का अध्ययन करते हुए प्राकृत भाषा का अनुशीलन किया तो कुछ विद्वानों ने स्वतन्त्र रूप से प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में अपनी शोध प्रस्तुत की। यह शोध सामग्री निबन्धों और स्वतन्त्र ग्रन्थों के रूप में प्राप्त होती है। 19वीं शताब्दी के चतुर्थ दशक में जर्मनी में प्राकृत भाषा का अध्ययन प्रारम्भ हो गया था। होएफर की डे प्राकृत डिआलेक्टो लिब्रिदुओ (1836 ई.) तथा लास्सन की इन्स्ीट्यूत्सीओनेस लिंगुआए प्राकृतिकाएँ इस समय की प्रमुख रचनाएँ हैं । पाँचवें दशक में प्राकृत ग्रन्थों का जर्मन में अनुवाद भी होने लगा था। ओ बोलिक ने 1848 ई. में हेमचन्द्र के अभिधानचिन्तामणि का जर्मन संस्करण तैयार कर दिया था। स्पीगल (1949 ई.) ने म्युंशनर गेलेर्ने आन्त्साइगन में प्राकृत भाषा का परिचय दिया है। इस समय तुलनात्मक दृष्टि से भी प्राकृत भाषा का महत्व बढ़ गया था। अतः अन्य भाषाओं के साथ प्राकृत का अध्ययन विदेशी विद्वान् करने लगे थे। डॉ. अर्नेस्ट ट्रम्प (1861-1862) ने इस प्रकार का अध्ययन प्रस्तुत किया, जो ग्रेमर आवद विन्धी लेंग्वेज कम्पेयर्ड विद द संस्कृत, प्राकृत एण्ड द काग्नेट इंडियन वर्नाक्युलर्स नाम से 1872 ई. में प्रकाशित हुआ। 1869 ई. फ्रेडरिक हेंग ने अपने शोधप्रबन्ध वर्गलचुंग डेस प्राकृत उण्ड डेर रोमानिश्चियन श्प्राखन में प्राकृत भाषा का तुलनात्मक अध्ययन किया है। 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में प्राकृत भाषा के व्याकरण का अध्ययन गतिशील हो गया था। डॉ. जे. एच. बूलर ने 1874 ई. में द देशी शब्द संग्रह आफ हेमचन्द्र एवं आन ए प्राकृत ग्लासरी इनटायटिल्ड पाइयलच्छी ये दो महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित किये। तथा 1889 ई. में यूवर डास लेबन डेस जैन मोएन्दोस हेमचन्द्रा नामक पुस्तक विएना से प्रकाशित हुई । ई बी कावेल ने प्राकृत रत्नाकर 0319
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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