SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रचना यशोवर्मा के विजयी दिनों में आरम्भ की थी, किन्तु कश्मीर के राजा ललितादित्य के हाथों यशोवर्मा का पराजय होने पर उसे अधूरा ही छोड़ दिया । अतः वाक्पतिराज का समय ई सन् 760 के लगभग है। 371. वासुपुज्जसामिचरियं बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य पर चन्द्रप्रभ की 8000 ग्रथांग्र प्रमाण रचना उपलब्ध है। इसका प्रारम्भ सुहसिद्धिबहुवसीकरण से होता है। चन्द्रप्रभ ने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों में पादलिप्त, हरिभद्र और जीवदेव का उल्लेख तथा ग्रंथों में तरंगवती का उल्लेख किया है। 372. वास्तुसार पूर्व शास्त्रों का अध्ययन कर संवत् 1372 में ठक्कुरफेरू ने वास्तुसार ग्रन्थ की रचना की। यहाँ गृहवास्तुप्रकरण में भूमिपरीक्षा, भूमिसाधना, भूमिलक्षण, मासफल, नींवनिवेशलग्न, ग्रहप्रवेशलग्न और सूर्यादिग्रहाष्टक का 158 गाथाओं में वर्णन किया गया है । 373. विक्रमसेनचरित इसमें विक्रमसेन नरेश का सम्यक्त्वलाभ से लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान जाने तक का वृत्तान्त प्राकृत छन्दों में वर्णित है। साथ ही दान, तप, भावना के प्रसंग से 14 कथाएँ भी दी गई हैं। यह एक उपदेशकथा ग्रन्थ है। इसके रचयिता ने अपना नाम पद्मचन्द्र शिष्य मात्र दिया है। ग्रन्थ की रचना का समय अज्ञात है । 374. विचारसार प्रकरण विचारसार प्रकरण भी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें 900 गाथाएँ हैं, जिनमें कर्मभूमि, भोगभूमि, आर्य, अनार्य देश, राजधानियाँ, तीर्थंकरों के पूर्वभव, मातापिता, स्वप्न, जन्म, समवशरण, गणधर, अष्टमहाप्रातिहार्य, कल्कि, शक विक्रम काल गणना, दशनिह्नव, चौरासी लाख योनियाँ एवँ सिद्ध स्वरूप आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया हैं। इसके रचयिता देवसूरिं के शिष्य प्रद्युम्नसूरि हैं। इनका समय 13वीं शती है। 375. विदेशों में प्राकृत - अध्ययन 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्राकृत भाषा का अध्ययन भी विदेशी विद्वानों द्वारा प्रारम्भ हो गया। फ्रान्सीसी विद्वान् चार्ल्स विल्किन्स ने अभिज्ञानशाकुन्तलम के अध्ययन के साथ प्राकृत का उल्लेख किया। हेनरी टामस कोलबुक ने प्राकृत 318 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy