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________________ ग्रन्थों में यह कृति कथा साहित्य में प्राचीनतम गिनी जाती है। वसुदेव के आत्म वृतान्त की कथा गुणाढ्य की बड्डकहा (वृहत्कथा) के नामक नरवाहनदत्त के अनुकरण पर लिखी हुई जान पड़ती है। इसके कर्ता संघदासगणि वाचक हैं जो वृहत्कल्पभाष्य के कर्ता संघदासगणि क्षमाश्रमण से भिन्न हैं । दुर्भाग्य से इनके संबंध में थोड़ी भी जानकारी नहीं मिलती। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये अपने विषय के सम्मानित विद्धान् थे और कथा वर्णन की शैली में निष्णात थे। ग्रंथ के आरंभ में अपनी रचना को ग्रंथकार ने गुरु परंपरागत संग्रह रचना कहा है तथा प्रथमानुयोग में वर्णित तीर्थंकर, चक्रवर्ती और दशारवंश के राजाओं के चरित के अनुसार सुधर्मा स्वामी ने यह चरित अपने शिष्य जंबू को उपदेशित किया है। 1 प्राकृत जैन कथा साहित्य के विकास के अध्ययन के लिये वसुदेवहिंडि एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रचना है । अर्धमागधी से किस प्रकार प्राचीन जैन महाराष्ट्री विकसित हो रही थी, उसके अध्ययन के लिये यह रचना महत्त्वपूर्ण कड़ी है । इसके अतिरिक्त, पैशाची में लिखी हुई अनुपलब्ध गुणाढ्य की बृहत्कथा का यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जैन रूपान्तर है । इसमें यत्र-तत्र सामाजिक और सांस्कृतिक सामग्री बिखरी पड़ी है। श्वेताम्बर जैन विद्धानों में यह रचना लोकप्रिय रही है । जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अपनी विशेषणवती (रचना ईसवी सन् 610) में वसुदेवचरियं का उल्लेख किया है । जिनदासगणि महत्तर ने आवश्यकचूर्णी (600-650) में वसुदेवहिंडि का उल्लेख करते हुए ऋषभचरित (1,164), प्रसन्नचन्द्र और वल्कचीरी ( 1,460 अ ) और मलयगिरि ने आवश्यक सूत्रवृत्ति (218) में वसुदेवहिंडि का उल्लेख किया है। धर्मसेनगणि महत्तर (7 वीं - 8वीं शताब्दी) ने अपने मज्झिमखंड (जिसे वसुदेवहिंडि का द्वितीयखंड भी कहा गया है) के आरंभ में कहा है कि उन्होंने संघदासगणि वाचक की 29 लंभ वाली वसुदेवहिंडि की अपूर्ण रचना को शेष 71 लंभों की रचना कर उसे पूर्ण किया है। इससे विदित होता है कि धर्मदास गणि महत्तर इस रचना से भलीभाँति परिचित थे । वसुदेवहिंडि मुख्यतया गद्यात्मक समासांत पदावलि में लिखी गई एक विशिष्ट रचना है। बीच-बीच में पद्य भी आ जाते हैं, कहीं गद्य-पद्य मिश्रित भी हो प्राकृत रत्नाकर 0315
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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