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________________ दी है। आपका जन्म 15 अक्टूबर 1926 को कर्नाटक के मण्डया जिले के मुरुकनहल्ली गांव में हुआ था। आपके पिता पण्डित धर्मराज श्रवणबेलगोला के पुजारी थे। स्वामी नेमिसागर वर्णी जी ने प्रो. वसन्तराज की शिक्षा आदि में विशेष सहयोग किया था। आपने बैंगलोर एवं मैसूर में अपनी शिक्षा बड़ी कठिनाई से पूरी की। संस्कृत में एम.ए. करने के बाद प्रो. वसन्तराज 1960 में लेक्चर के रूप में नियुक्त हुए। 1971 में मैसूर विश्वविद्यालय में जब जैनालाजी एवं प्राकृत विभाग की स्थापना हुई तब विभाग के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. ए. एन. उपाध्ये के सम्पर्क में प्रो. वसन्तराज आये। 1971 से वे विभाग में सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा कक्षाओं का शिक्षण करने लगे। प्रो वसन्तराज ने प्रो. ए. एन. उपाध्ये के निर्देशन में त्रिविक्रम के प्राकृत ग्राम पर पीएच.डी. के लिए शोधकार्य प्रारम्भ किया, जो 1979 में प्रो. टी. जी. कलघटगी के निर्देशन में पूरा हुआ। तब आप प्राकृत विभाग में रीडर के रूप में नियुक्त हुए। आपके प्रयत्नों से 1980 से विभाग में एम.ए. प्राकृत एवं जैनालाजी का पाठ्यक्रम प्रारम्भ हो गया। सन् 1983 में प्रो. वसन्तराज विभाग में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए और 1986 में आप वहाँ से सेवा निवृत्त हुए। 1988 ई. से 1992 तक प्रो. वसन्तराज ने मद्रास यूनिवर्सिटी के जैनालाजी विभाग में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इस बीच प्रो. वसन्तराज ने देशविदेश के कई विद्वानों को शोध के क्षेत्र में मार्गदर्शन किया। आपकी 75 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर प्रो. जयन्द्र सोनी जर्मनी ने “वसन्तगौरवम्" नामक अभिनन्दन ग्रन्थ भी समर्पित किया है। प्रो. वसन्तराज प्राकृत परम्परा और जैन इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान् थे। आपकी पुस्तकों में श्रुतावतार, सन्मतिश्री विहार, बारसअनुवेक्खा, दिगम्बर जैन आगम कृतिगलभासे, जैनागम इतिहासदीपिके आदि प्रमुख हैं। प्रो. वसन्तराज अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं। यथा- प्राकृत ज्ञानभारती अवार्ड (1990), आचार्य विद्यामन्द पुरस्कार (1997), आचार्यरत्न बाहुबली कन्नड़ साहित्य अवार्ड आदि। 366. वसुदेवहिंडि प्राकृत के प्राचीन कथा ग्रन्थ वसुदेवहिंडि में कृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण (हिंडि) का वृतान्त है इसलिए इसे वसुदेवचरित भी कहा गया है। आगमबाह्य 3140 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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