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________________ गये हैं। भाषा सरल, स्वाभाविक और प्रसादगुणसंपन्न है, संवाद चुस्त हैं। भाषा प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है। कितने ही प्रयोग बड़े विलक्षण हैं जिनका व्याकरण के नियमों से मूल नहीं बैठता और जिनका प्राकृत के विकास के प्राचीनतम स्तर से संबंध है। इस ग्रन्थ में 29 लंभ हैं जो 11.000 श्लोकप्रमाण हैं। यह ग्रन्थ छ: अधिकारों में विभक्त है कहप्पत्ति (कथा की उत्पत्ति), पेढिया (पीठिका) मुह (मुख), पडिमुह (प्रतिमुख), सरीर (शरीर) और उवसंहार (उपसंहार)। कथोत्पत्ति (2-26) में धर्म प्राप्ति की दुर्लभता, इन्द्रियविषयों में आसक्ति, मधुबिन्दुदृष्टांत, जंबू और प्रभव का संवाद कुबेरदत्त एवं कुबेरदत्ता का आख्यान, महेश्वरदत्त की कथा, प्रसन्नचन्द्र वल्कचीरी का आख्यान, ब्राह्मण दारक की कथा, अणाढिय देव की उत्पत्ति और वसुदेवचरित्त आदि की कथायें हैं। तत्पश्चात् धम्मिल्लहिंडि (27-76) का वर्णन है। उक्त छह अधिकारों में इस अधिकार का उल्लेख नहीं है। जान पड़ता है कि इस अधिकार का समावेश बाद में कर लिया गया है। 367. वसुदेवहिण्डीसार___ यह विशाल कथाग्रन्थ वसुदेवहिण्डी का संक्षिप्त सार है जो 250 लोकप्रमाण प्राकृत -गद्य में लिखा गया है। इस वसुदेवहिण्डीसार के कर्ता कौन है, उन्होंने क्यों और किसलिए सारोद्धार किया है ? यह निश्चित नहीं हो सका। केवल ग्रन्थ के अन्त में लिखा है कि इह संखेपेण सिरिगुणनिहाणसूरीणं कए कहा कहिया' अर्थात् श्रीगुणनिधानसूरि के लिए संक्षेप में कथा कही गई है। पर किसने कही है यह ज्ञात न हो सका। इसके सम्पादक पं. वीरचन्द्र के अनुसार यह ग्रन्थ तीन-चार सौ वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं है। इसे 'वसुदेवहिण्डीआलापक' भी कहा जाता है पर ग्रन्थान्त में 'वसुदेवहिण्डी कहासमत्ता' लिखा है इससे इसका 'वसुदेवहिण्डीसार' नाम ठीक है। 368. वसुनन्दिश्रावकाचार(अथवा उपासकाध्ययन) वसुनन्दिश्रावकाचार के कर्ता आचार्य वसुनन्दि हैं जिनका समय वि.सं. की 12वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है। इस ग्रन्थ की कुछ गाथायें भावसंग्रह की गाथाओं से समानता रखती हैं। पण्डित आशाधर जी ने सागारधर्मामृत की टीका 3160 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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