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________________ आयु में अल्प शिष्यजनों के लिए वट्टकेराचार्य ने अट्ठारह हजार पद प्रमाण आचारांग को संक्षिप्त करके मूलाचार को बारह अधिकारों में प्रस्तुत किया है। अपनी वृत्ति के अन्त में भी वट्टकेर को ही इसका कर्ता उल्लेख किया है। इतना ही नहीं, वसुनन्दि ने मूलाचार के सातवें से अन्तिम अधिकार तक के सभी अधिकारों के अन्त में मूलाचार को आचार्यवर्य वट्टकेरकृत होने का उल्लेख किया है। मूलाचार के द्वितीय भाग के अन्त में दिये गये पंदृ मेधावि कवि द्वारा लिखित प्रशस्ति पाठ में भी इसे वट्टकेराचार्यकृत कहा गया है। आदरणीय पं. नाथूराम प्रेमी ने मूलाचार के कर्ता वट्टकेरि नामक लेख में इसे वट्टकेराचार्यकृत मानते हुए लिखा है दक्षिण भारत में गाँवों के नाम व्यक्ति के नाम से पहले लिखने की पद्धति बहुत समय से है। जैसे सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णनयहाँ सर्वपल्ली शब्द उनके गाँव का ही सूचक है। कोण्डकुण्ड' गाँव के रहने वाले आचार्य कुन्दकुन्द तथा तुम्बुलूर ग्राम के रहने के कारण तुम्बलूराचार्य कहलाये, वैसे ही मूलाचार के कर्ता वटुंगेरी या वेट्टेकेरी ग्राम के ही रहने वाले होंगे अतः वट्टकेरि कहलाने लगे। वट्टकेरि नाम उनके गाँव का बोधक होना चाहिए। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने मूलाचार को वट्टकेराचार्य की रचना बतलाते हुए लिखा है मूलाचार का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि वट्टकेर एक स्वतन्त्र आचार्य हैं और ये कुन्दकुन्दाचार्य से भिन्न हैं। __डॉ. हीरालाल जी ने वट्टकेर को कुन्दकुन्द से भिन्न स्वीकार करते हुए लिखा है- वट्टकेर स्वामीकृत मूलाचार को कहीं-कहीं कुन्दकुन्दाचार्यकृत भी कहा गया है। यद्यपि यह बात सिद्ध नहीं होती, तथापि उससे इस ग्रन्थ के प्रति समाज का महान् आदरभाव प्रकट होता है। मूलाचार न तो कुन्दकुन्दाचार्य की कृति ही सिद्ध होता है और न संग्रह ग्रन्थ, अपितु यह वट्टकेराचार्य की एक मौलिक एवं प्राचीन कृति है। हाँ, वट्टकेर यह नाम केवल उनके जन्मभूमि वाले नगर का सूचक होने से दक्षिण की परम्परानुसार ही नाम के रूप में प्रसिद्ध हो गया और बाकी नाम आज भी विस्मृत है। मूलाचार एक मौलिक, प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ है जो कि दिगम्बर परम्परा में आचारांग सूत्र के रूप में मान्य है। श्रमण एवं श्रावक समाज में यह ग्रंथ प्राकृत रत्नाकर 0311
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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