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________________ प्रदेशी के रूप में पार्श्वनाथ परम्परा के मुनि केशी के साथ जीव के अस्तित्व एवं नास्तित्व को लेकर संवाद करता है। मुनिकेशी इस दुर्गम प्रश्न का युक्ति एवं सरलता से समाधान करते हैं। समाधान पाकर राजा प्रदेशी अन्त में सम्यगदृष्टि बन जाता है। राजा प्रदेशी एवं केशी कुमार श्रमण के इस संवाद द्वारा ‘जीव एवं शरीर एक है', इस मत का खण्डन कर ‘जीव एवं शरीर भिन्न है', इस तथ्य का प्रतिपादन किया गया है। इस आगम से पार्श्वनाथ की परम्परा से सम्बन्धित अनेक बातों की जानकारी तो प्राप्त होती ही है, साथ ही स्थापत्य, संगीत, वास्तु, नृत्य एवं नाट्य कला सम्बन्धी अनेक तथ्यों पर भी प्रकाश पड़ता है। इस उपांग की गणना अर्धमागधी के प्राचीन आगमों में की जाती है। इसमें दो भाग हैं और कुल सूत्र 217 हैं। इसमें राजा पएसी प्रदेशी द्वारा किए गये प्रश्नों का केशी मुनि द्वारा समाधान प्रस्तुत किया गया है। विद्वानों का अनुमान है कि इस ग्रन्थ का यथार्थ नायक कौशल का इतिहास प्रसिद्ध राजा प्रसेनजित् ही रहा है, बाद में उसके स्थान पर प्रदेशी कर दिया है। इसके प्रथम भाग में तो सूर्याभदेव का वर्णन है और दूसरे भाग में इस देव के पूर्वजन्मों का वृत्तान्त है। सूर्याभ का जीव राजा प्रदेशी के रूप में पार्श्वनाथ की परम्परा के मुनि केशी से मिला था। उसने आत्मा की सत्ता के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न किये थे। अन्त में केशी मुनि के उपदेश से यह सम्यम्दृष्टि बना था। सम्यक्त्व के प्रभाव से वह सूर्याभदेव हुआ। इस उपांग की निम्न विशेषताएँ हैं1. स्थापत्य, संगीत और नाट्यकला की दृष्टि से अनेक तत्वों का समावेश है। बत्तीस प्रकार के नाटकों का उल्लेख किया है। सूर्याभदेव ने महावीर को 32 प्रकार के नाटक दिखलाये थे। 2. लेखन सम्बन्धी सामग्री का निर्देश किया है। 3. साम, दाम और दण्डनीति के अनेक सिद्धान्तों का समावेश वर्तमान है। 4. बहत्तर कलाओं, चार परिषदों एवं कलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य का निरूपण किया गया है। 5. साहित्यिक दृष्टि से केशी और राजा प्रदेशी के मध्य सम्पन्न हुआ संवाद है। 3040 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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