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पड़े हैं। सट्टककार राजशेखर ने संस्कृत को छोड़कर प्राकृत में अपने ग्रंथ की रचना की है। हरिउड्ड, णन्दिउड्ड, पोट्टिस और हाल आदि पूर्ववर्ती सुकवियों का उल्लेख कर्पूरमंजरी में किया गया है। 353. रामपाणिवाद
उषानिरुद्ध आदि काव्य ग्रन्थों के रचयिता रामपाणिवाद मलावर प्रदेश की नम्बियम् जाति के थे। इनका व्यवसाय नाट्य प्रदर्शन के समय मुरज या मृदंग बजाना था। यही यथार्थतः पाणिवाद नामकी सार्थकता है। इस प्रकार कवि साहित्य और नृत्यकला की परम्परा से सुपरिचित था। कवि का जन्म ई. सन् 1707 के लगभग दक्षिण मलावर के एक ग्राम में हुआ था। बाल्यकाल में उसने अपने पिता से ही शिक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान् नारायणभट्ट से काव्य साहित्य की शिक्षा प्राप्त की। प्रसिद्ध कवि होने के बाद ये उत्तर मलावर के कोलतिरि राजा के आश्रय में चले गये। यहाँ से चलकर ये क्रमशः राजा वीरराय, कोचीन के एक ताल्लुकेदार मुरियनाइड चेम्पक केसरी के राजा देवनारायण, वीरमार्तण्ड वर्मा एवं कार्तिक तिरूनाल आदि राजाओं के आश्रय में भी रहे । इनकी मृत्यु ई.सन् 1775 के लगभग हुई थी।
कवि रामपाणिवाद यावजीवन ब्रह्मचारी रहा। संस्कृत प्राकृत और मलयालम इन तीनों भाषाओं में उसने समान रूप से रचनाओं का प्रणयन किया है। संस्कृत में इनके चार नाटक, तीन काव्य और पाँच स्तोत्र ग्रन्थ उपलब्ध हैं । इनके दो टीका ग्रन्थ भी मिले हैं। मलयालम में इनकी बहुत सी रचनाएँ हैं, जिनमें कृष्णचरित शिवपुराण पंचतन्त्र एवं रूक्मांगद चरित विख्यात है। ये प्राकृत भाषा के महान पण्डित कवि हैं। इन्होंने वररुचि के प्राकृतप्रकाश पर प्राकृतवृत्ति नामक टीका भी लिखी है। इनके दो खण्ड काव्य हैं- कंसवहो और उषानिरुद्ध । 354. राजप्रश्नीयसूत्र (रायपसेणइयं)
नंदीसूत्र में द्वितीय उपांग ग्रन्थ राजप्रश्नीय का नाम ‘रायपसेणिय' मिलता है। इसके दो विभाग हैं। प्रथम भाग में सूर्याभ नामक देव का वर्णन है, जो भगवान् महावीर के सामने उपस्थित होकर नृत्य एवं विभिन्न प्रकार के नाटकों की रचना करता है। दूसरे भाग में सूर्याभ के पूर्वजन्म का वृत्तांत है। सूर्याभ का जीव राजा
प्राकृत रत्नाकर 0303