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351.रम्भामंजरी
कर्पूरमंजरी के पश्चात् प्राकृत सट्टक की परम्परा में रंभामंजरी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके रचयिता मुनि नयचन्द्र षड्भाषाविद् कवि थे। कवि नयचन्द्र का समय लगभग 14वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है। कर्पूरमंजरी के आधार पर लिखे गये इस सट्टक को कवि ने कर्पूरमंजरी से अधिक श्रेष्ठ माना है। तीन जवनिकाओं वाले इस सट्टक में वाराणसी के राजा जैत्रचन्द्र एवं लाटदेश की राजकुमारी रंभामंजरी की प्रणय कथा वर्णित है।
यद्यपि कवि नयचन्द्र ने इसे कर्पूरमंजरी से अधिक श्रेष्ठ सट्टक बताया है, किन्तु शास्त्रीय दृष्टि से इस सट्टक में कुछ कमियाँ रह गई हैं। तीन जवनिकाओं में ही भरतवाक्य के बिना अचानक समाप्त होने के कारण इसकी कथावस्तु अधूरी सी प्रतीत होती है। कथा का अंत कैसे हुआ यह कौतूहल अन्त तक बना रहता है। इसकी कथावस्तु भी अभिजात्य वर्ग के संस्कारों के विरुद्ध ही प्रतीत होती है। नायक के जीवन में मर्यादा का अभाव है। सात रानियों के होते हुए नायक रंभामंजरी का अपहरण करा कर विवाह करता है। इस दृष्टि से कथावस्तु में मौलिकता तो है, किन्तु सरसता का अभाव है।
यह सट्टक कर्पूरमंजरी के आधार पर ही लिखा गया है। अतः नायक-नायिका का स्वभाव, शृंगार, प्रेम, विरह, बसंतोत्सव आदि सभी कुछ कर्पूरमंजरी की तरह ही वर्णित है। भाषा की दृष्टि से संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओं का प्रयोग हुआ है। वर्णन-कौशल एवं छंद-अलंकारों का चारुविन्यास कवि के पांडित्य को दर्शाता है। 352. राजशेखर कवि ___ कर्पूरमंजरी के रचयिता यायावरवंशीय राजशेखर का समय ईसवी सन् 900 के लगभग है। कर्पूरमंजरी के अतिरिक्त उन्होंने बालरामायण, बालभारत, विद्धशालभंजिका और काव्यमीमांसा की भी रचना की है। राजशेखर नाटककार की अपेक्ष कवि अधिक थे। उक्ति विशेष को उन्होंने काव्य कहा है, भले ही भाषा कोई भी हो। वे सर्वभाषाचतुर कहे जाते थे। अपनी भाषा पर उन्हें पूर्ण अधिकार है। वसंत, चन्द्रोदय, चर्चरी नृत्य आदि के वर्णन कर्पूरमंजरी में बहुत सुन्दर बन
302 0 प्राकृत रत्नाकर