SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 348. रयणचूडरायचरियं रत्नचूडराजचरित में नायक रत्नचूड का सर्वांगीण जीवन चरित वर्णित है। उत्तराध्ययन की सुखबोधा नामक टीका के रचयिता आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने वि.सं. 1129-40 के मध्य इस गद्य-पद्य मिश्रित चरितकाव्य की रचना की थी। मोक्ष पुरुषार्थ को उद्देश्य बनाकर इस ग्रन्थ में राजा रत्नचूड एवं उनकी पत्नी तिलकसुंदरी के धार्मिक जीवन को अंकित किया गया है। इस ग्रन्थ की कथावस्तु तीन भागों में विभक्त है। (1) रत्नचूड का पूर्वभव (2) जन्म, हाथी को वश में करने के लिए जाना, तिलकसुंदरी के साथ विवाह (3) रत्नचूड का सपरिवार मेसामन एवं देशव्रत ग्रहण करना। वस्तुतः इस चरितकाव्य में नायक रत्नचूड का चरित उत्तरोत्तर विकसित होता हुआ दिखाया है। पूर्वजन्म की घटनाओं का प्रभाव नायक के वर्तमान जीवन को उदात्त रूप देता है। ग्रन्थ में वर्णित विभिन्न अवान्तर कथाएँ लौकिक एवं उपदेशात्मक हैं। धनपाल सेठ की कटुभाषिणी भार्या ईश्वरी' का दृष्टांत लोककथा का प्रतिनिधित्व करता है। राजश्री, पद्मश्री, राजहंसी, सुरानंदा आदि के पूर्वभवों की घटनाओं के वर्णन द्वारा दान, शील, तप एवं भावधर्म की महत्ता को स्पष्ट किया गया है। काव्यात्मक वर्णनों में नदी, पर्वत, वन, सरोवर, संध्या, युद्ध आदि के वर्णन प्रशंसनीय हैं। इसे रत्नचूडकथा या तिलकसुन्दरी-रत्नचूडकथानक भी कहते हैं। __ पूर्वजन्म में कंचनपुर के बकुल माली ने ऋषभदेव भगवान् को पुष्प चढ़ाने के फलस्वरूप गजपुर के कमलसेन नृप के पुत्र रत्नचूड के रूप में जन्म ग्रहण किया। युवा होने पर एक मदोन्मत्त हाथी का दमन किया किन्तु हाथी के रूपधारी विद्याधर ने उसका अपहरण कर जंगल में डाल दिया। इसके बाद वह नाना देशों में घूमता हुआ अनेक अनुभव प्राप्त करता है, अनेकों राज कन्याओं से विवाह करता है और अनेकों ऋद्धि-विद्याएँ भी सिद्ध करता है। तत्पश्चात् पत्नियों के साथ राजधानी लौटकर बहुत काल तक राज्यवैभव भोगता है। फिर धार्मिक जीवन बिताकर स्वर्ग-प्राप्ति करता है। 349.रयणसार यह आचार्य कुन्दकुन्द की रचना है। रयणसार में 167 गाथायें हैं। यहाँ सम्यक्त्व को रत्नसार कहा गया है। इस ग्रंथ के पढ़ने और श्रवण से मोक्ष की प्राप्ति बताई है। एक उक्ति देखिये300 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy