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________________ शिष्य वज्रनन्दि ने विक्रम संवत् 526 में द्रविण संघ की स्थापना की है अतएव यतिवृषभ का समय विक्रम संवत् 526 से पूर्व सुनिश्चित है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. ज्योति प्रसाद ने ई. सन् 176 के आस-पास उनका समय निश्चित किया है। उन्होंने यतिवृषभ के ग्रन्थ में गुप्तवंशीय राजाओं से सम्बन्धित गाथाओं को प्रक्षिप्त माना है, जो ई. सन् 500 के लगभग ग्रन्थ में जोड़ दी हैं। 346. रत्नपरीक्षा रत्नपरीक्षा ग्रन्थ कन्नापुर महेन्द्रगढ़वासी श्रीचन्द्र के पुत्र श्रीमालवंशीय ठक्करफेरु ने संवत 1372 ईसवी सन् 1315 में लिखा है। इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर 132 गाथायें हैं जिनमें रत्नों के उत्पत्ति, आकार, वर्ण, जाति गुण दोष फल और मूल्य का विस्तार से वर्णन है। वज्र नामक रतन शूर्पारक, कलिंग कोशल और महाराष्ट्री में मुक्ताफल पदमरागमणि सिंघल और तुबरदेश आदि देशों में मरकतमणि, मलयपर्वत और बर्बर देश में इन्द्रनील सिंघल में विद्रुम विन्ध्य पर्वत, चीन महावीर और नेपाल में तथा लहसुनिया वैडूर्य और स्पटिक नेपाल, काश्मीर और चीन आदि देशों में पाये जाते थे। अच्छे रत्न स्वस्थ्य, दीर्घजीवन धन और गौरव प्रदान करते हैं तथा सर्प, जंगली जानवर, पानी आग बिजली घाव और रोग मुक्त करते हैं। 347.रत्नशेखरसूरि __ सिरिवालकहा ग्रन्थ के अन्त में कहा गया है कि इसका संकलन वज्रसेन गणधर के पट्टशिष्य एवं प्रभु हेमतिलकसूरि के शिष्य रत्नशेखरसूरि ने किया। उनके शिष्य हेमचन्द्र साधु ने वि. सं. 1428 में इसको लिपिबद्ध किया। पट्टावलि से ज्ञात होता है कि रत्नशेखरसूरि तपागच्छ की नागपुरीय शाखा के हेमतिलक के शिष्य थे। वे सुलतान फिरशेषजोह तुगलक के समकालीन थे। रत्नशेखरसूरि का जन्म वि. सं. 1372 में हुआ था और 1384 में दीक्षा तथा 1400 में आचार्य पद। इनका विस्द 'मिथ्यान्धकारनभोमणि' था। वि. सं. 1407 में इन्होंने फिरशेषजोह तुगलक को धर्मोपदेश दिया था। इसकी अन्य रचनाएँ : गुणस्थानक्रमारोह, लघुक्षेत्रसमास, संबोहसत्तरी, गुरुगुणशट्त्रिंशिका, छन्दःकोश आदि मिलती हैं। प्राकृत रत्नाकर 0299
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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