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चूर्णि सूत्रकार के रूप में प्रसिद्ध आचार्य बहुप्रतिज्ञा के धनी काव्यगरिमा से मण्डित भी हैं। क्योंकि उन्होंने सूत्र के अर्थ को अनेक हेतुओं, निपात एवं उपसर्ग, प्रत्यय, व्युत्पत्ति आदि के माध्यम से स्पष्ट किया है। वे सभी प्रकार के विषय के ज्ञाता हैं, क्योंकि उनके सूत्र में जो अर्थ हुआ है, वह उनके व्यक्तित्व को प्रकट करता है। प्रोफेसर राजाराम जैन ने यतिवृषभ के विषय में लिखा है कि वे श्रुतज्ञान की परम्परा के प्रतिष्ठित आचार्य हैं। उन्होंने जो बौद्धिक प्रतिभा प्राप्त की उसका प्रशस्ति ज्ञान परवर्ती आचार्य ने किसी न किसी रूप में अवश्य लिया है। आर्यिका विशुद्धमति माताजी ने तिलोयपण्णति का सम्पादन करते हुए यतिवृषभ के व्यक्तित्व के विषय में कथन किया है कि आचार्य यतिवृषभ करणानुसार के महान आचार्य हैं। इन्होंने जो खगोल और भूगोल का विषय प्रतिपादन किया है, वह बहुत विस्तृत है । पण्डित नाथूराम प्रेमी ने यतिवृषभ को जैन गणित का उत्कृष्ट आचार्य माना है। डॉ. एन. उपाध्ये ने भी उन्हें महापुरुषों के जीवन को प्रस्तुत करने वाला कहा है ।
यतिवृषभ का व्यक्तित्व विचारकों के कथन के साथ-साथ ग्रन्थ के सूत्रों में प्रविष्टि करते हैं तो उन्हें इतिहासवेत्ता, पुराण - अभिलेखागार, भूगोलवेत्ता, कर्मप्रकृति के गणितीय प्रस्तोता कहा जा सकता है। क्योंकि उनके विशालकाय ग्रन्थ प्रस्तुत प्रस्तुत करता है । इसके भाषा सौन्दर्य में प्रविष्टि करने पर प्राकृत के प्रसिद्ध गाथा छन्द के सम्पूर्ण सौष्ठव को सर्वत्र देखा जा जाता है ।
प्राचीन परम्परा के आचार्य पुष्पदन्त, भूतबलि और आचार्य कुन्दकुन्द यतिवृषभ से अवश्य प्राचीन हैं । परन्तु यतिवृषभ विषय विवेचन के कारण षट्खण्डागम के रचनाकार भूतबलि के समकालीन या उनके कुछ ही उत्तरवर्ती है। इन्द्रनन्दी ने अपने श्रुतावतार में कषायपाहुड़चूर्णि के सूत्रकर्त्ता के रूप में यतिवृषभ को स्मरण किया ळै । यतिवृषभ को आर्यमंक्षु और नागहस्ति का शिष्य कहा है । इस दृष्टि से उनका समय शक संवत् तीसरी शताब्दी के पश्चात् ही माना जा सकता है। समय-निर्धारण में जुगलकिशोर मुख्तार का नाम सर्वप्रथम आता है। उन्होंने उनका समय चौथी - पाँचवी शताब्दी के बीच का ही माना है। एक अन्य प्रमाण से आचार्य यतिवृषभ पूज्यपाद के पूर्ववर्ती हैं क्योंकि इनके
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