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________________ किया जाता है | अतः वट्टकेर प्रथम शताब्दी के प्राकृत आचार्य थे। इनका ग्रन्थ मूलाचार मुनियों के आचार का प्रमुख ग्रन्थ है। इसमें कुल 1252 गाथाएँ हैं। भाषा और शैली की दृष्टि से शौरसेनी प्राकृत की यह प्राचीन रचना है। श्रमणाचार का ग्रन्थ होने के कारण इसमें अनेक गाथाएँ दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के साहित्य में प्रचलित मिलती हैं। जैन आचार दर्शन के लिए मूलाचार एक आधारभूत ग्रन्थ है । मूलाचार प्रमुख रूप से श्रमणाचार का प्राचीन ग्रन्थ है । शौरसेनी प्राकृत में रचित इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य वट्टकेर हैं। भाषा एवं विषय दोनों ही दृष्टियों से यह ग्रन्थ प्राचीन है। इस ग्रन्थ में 12 अधिकार हैं, जिनमें श्रमण-निर्ग्रथों की आचार संहिता का सुव्यवस्थित, विस्तृत एवं सांगोपांग विवेचन किया गया है। इसकी तुलना आचारांग से की जाती है। आचार्य वीरसेन ने षट्खण्डागम की धवला टीका में मूलाचार के उद्धरण को 'आचारांग' नाम दे कर इसका आगमिक महत्त्व प्रतिपादित किया है । प्रथम मूलगुणाधिकार में पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रिय-निरोध, छः आवश्यक आदि को मिलाकर श्रमण के 28 मूलगुणों के स्वरूप एवं उनके पालन से प्राप्त फल का विवेचन है। द्वितीय बृहत्प्रत्याख्यानाधिकार में श्रमण को सभी पापों का त्याग करने, कषाय रहित रहने, परीषहों को समताभाव से सहने, चार आराधनाओं में स्थिर रहने आदि का उपदेश दिया गया है। तीसरे संक्षेपप्रत्याख्यानाधिकार में आकस्मिक मृत्यु के समय कषाय एवं आहार त्याग का निर्देश दिया है। समाचाराधिकार में दस प्रकार के आचारों का वर्णन है। पंचाचाराधिकार में दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच आचारों का भेद सहित विस्तार से वर्णन है । प्रसंगवश इसमें आगम एवं सूत्र ग्रन्थों का भी उल्लेख हुआ है। पिण्डशुद्धिअधिकार में श्रमणों की पिण्डैषणा से सम्बन्धित नियमों की मीमांसा की गई है । षडावश्यकाधिकार में ' आवश्यक' शब्द का अर्थ बताते हुए सामायिक, स्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान एवं कायोत्सर्ग इन छः आवश्यकों का भेदपूर्वक विस्तार से निरूपण किया है। इस अधिकार के प्रारम्भ में अर्हन्त, जिन, आचार्य, साधु आदि पंचनमस्कार की निरक्तिपूर्वक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। द्वादशानुप्रेक्षाधिकार में अनित्य, अशरण, प्राकृत रत्नाकर 0295
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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