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________________ अशुचि आदि बारह अनुप्रेक्षाओं का सूक्ष्म विवेचन करते हुए इन्हें कर्मक्षय एवं परिणामशुद्धि का माध्यम बताया गया है। अनगारभावनाधिकार में अनगार का स्वरूप, चिन्ह, व्रत, भिक्षा, विहार आदि से सम्बन्धित शुद्धियों का पालन करने का निर्देश है। समयसाराधिकार में शास्त्र के सार का प्रतिपादन करते हुए चारित्र को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। जीवों की रक्षा के लिए यतना को श्रेष्ठ कहा गया है। यथा - जदं चरे जदं चिठे जदमासे जदं सये। जदं भुंजेज भासेज एयं पावं ण बज्झई॥...(गा.1015) अर्थात् – यत्नपूर्वक गति करे, यत्नपूर्वक ठहरे, यत्नपूर्वक बैठे, यत्नपूर्वक सोये, यत्नपूर्वक भोजन करे, यत्नपूर्वक बोले, इस प्रकार पापकर्म नहीं बंधता है। शीलगुणाधिकार में शील के 18,0000 भेदों का कथन किया गया है। पर्याप्तिअधिकार में जीव की छ: पर्याप्तियों को बताकर संसारी जीव के अनेक भेद-प्रभेदों का कथन किया गया है। 344. मृच्छकटिकम् महाकवि शूद्रक के मृच्छकटिकम् को प्राचीन संस्कृत नाटकों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शूद्रक के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है। अनुमानतः इनका. समय लगभग पाँचवीं शताब्दी माना गया है। महाकवि शूद्रक का मृच्छकटिक लोकजीवन का प्रतिनिधि नाटक है। इसमें कवि ने नायक चारदत्त तथा नायिका वसंतसेना की प्रेमकथा को राजनैतिक घटना से सम्बद्ध कर तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन को यथार्थ रूप से प्रतिबिम्बित किया है। विविध प्राकृत भाषाओं के सफल प्रयोग की दृष्टि से मृच्छकटिकम् अद्वितीय कृति है। इस नाटक में प्रयुक्त प्राकृतों में विविधता है। कवि ने पात्रानुकूल प्राकृत भाषाओं का बेजोड़ प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृत भाषाओं की जानकारी के लिए मृच्छकटिकम् का अध्ययन अत्यंत उपयोगी है। सब मिलाकर इस नाटक में 30 पात्र हैं, जिनमें से सूत्रधार, नटी, दासी रदनिका, दासी मदनिका, बसंतसेना, उसकी माता, चेटी, दास कर्णपूरक, चास्दत्त की पत्नी धूता, शोधनक एवं श्रेष्ठी ये 11 पात्र शौरसेनी में बोलते हैं । वीरक एवं 296 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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