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काव्यपत्र भी सुरक्षित है, जो किसी प्रेमी ने अपने आत्मीय जन को लिखा होगा। प्राकृत की कुल 9 गाथाओं में गुम्फित वह पत्र इस प्रकार है
कुसल अम्हाण वर अणवरयं तुम्ह गुणनिलयंतस्स। पट्ठाविय नियकुसलं जिम अम्हं होइ संतोसो॥ 1॥ सो दिवसो सा राई सो य पएसो गुणाण आवासो। सुह गुरू तुह मुहकमलं दीसइ जत्थेव सुहजणणं॥2॥ किंअब्भुज्जो देसो किंवा मसि नत्थि तिहुयणेसयले। किं अम्हेहिं न कज्जं जं लेहो न पेसिओ तुम्हें॥3॥ जइ भुजो होइ महीं उयहि मसी लेहिणीय वणराई। लिहइ सुराहि वणाहो तुम्ह गुणा ण याणंति॥4॥ जह हंसो सरइ सरंपड्डल कुसुमाइं महुयरो सरड्। चंदणवणं च नागो तह अम्ह मणं तुमं सरइ ॥ 5 ॥ जह भदवए मासे भमरा समरंति अंब कुसुमाइं। तह भयवं मह हिययं सुमरइ तुम्हाण मुहकमलं॥6॥ जह वच्छ सरइ सुरहिं वसंतमासंच कोइला सरइ। विज्झो सरइ गइंदं तह अम्ह मणं तुमं सरइ ॥7॥ जह सो नील कलाओ पावस कालम्मि पंजर बूढो। संभरइ वणे रमिउं तह अम्हं मणं तुमं सरइ॥8॥ जहसइसीय रामोरूप्पिणि कणहोणलोयदमयंती। गोरी सरइ रुई तह अम्ह मणं तुमं सरइ ॥१॥
राजस्थान के जैन शास्त्र-भण्डारों में संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी भाषा की तरह शौरसेनी प्राकृत भाषा की पाण्डुलिपियाँ का भी अच्छा संग्रह मिलता है। आचार्य कुन्दकुन्द की पूरी कृतियों का संग्रह राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में संग्रहित है। 328. मनोरमाचरित मनोरमा की कथा जिनेश्वरसूरिकृत कहारयणकोस (सं. 1108) में दी गई
प्राकृत रत्नाकर 0 283