________________
जैन ग्रन्थों में अनेक विद्याओं और मन्त्रों का वर्णन मिलता है। जैन साधु अनेक विद्याओं मन्त्रों के जानकार होते थे । जन-सामान्य में उनके चमत्कार भी दिखाते थे। जन-जीवन में इनका प्रयोग अनेक इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथा में पोट्टिला की कथा आती है । वह जब प्रयत्न करने पर भी अपने पति का प्रेम प्राप्त न कर सकी तो उसने चूर्णयोग, मन्त्रयोग, कार्मणयोग, कामयोग, हियपयडडावण काउडडावण, वशीकरण, गुटिका आदि के प्रयोग द्वारा उसे वश में करना चाहा। इसी प्रकार एक परिव्राजक ने मन्त्र और औषधि की शक्ति द्वारा नगर की सभी सुन्दरियों को अपने वश में कर लिया था। (सूत्रकृतांग टीका) लोगों में यह भी मान्यता थी कि मुर्गे का सिर भक्षण करने से राजपद प्राप्त होता है ।
जादू टोने और झाड़-फूँक के भी अनेक चित्र उपलब्ध होते हैं । प्रायः लोग स्नान करने के बाद कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त आदि करते थे । कौतुक के नो भेद गिनाये हैं- विस्नपन, होम शिव परियरय, क्षारदहन, धूप, असदृशवेषग्रहण अवयासत, अवस्तोभन और बन्ध । नजर से बचने के लिए ताबीज आदि बांधना बन्ध कौतुक कहलाता था । कुवलयमालाकहा में पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक जादूटोने और टोटके करने का उल्लेख है ।
शुभाशुभ शकुन से सम्बन्धित अनेक कथाएँ प्राप्त होती हैं । समराइ च्चकहा में चन्द्रकुमार और चन्द्रकान्ता जब कुएँ में गिरा दिये जाते हैं तो वहाँ से छुटकारा पाने के लए चिन्तातुर होते हैं। तभी चन्द्रकान्ता का बांया और चन्द्र कुमार का दायां नेत्र फड़कने लगता है। इस शकुन को वे शुभ मानकर सन्तोष करते हैं और अन्त में एक सार्थवाह के द्वारा कुंए से निकाल लिए जाते हैं। कुवलयमालाकहा में कुमार की विदा के समय शुभ - अशुभ शकुनों पर विचार किया जाता है । विभिन्न दिशाओं, पशु-पक्षी, पेड़ पौधे, तथा शरीरिक क्रियाओं से शुभ-अशुभ शकुनों का विचार किया जाता है।
इनके अतिरिक्त यज्ञपूजा, वटवासिनी देवी की पूजा, गंगा में अस्थियों का विसर्जन, सिद्धों की साधना आदि कितने लोकविश्वास की जानकारी प्राकृत साहित्य के माध्यम से होती है । यद्यपि जैन धर्म ईश्वरकर्तत्व आदि पर विश्वास
प्राकृत रत्नाकर 265