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________________ नहीं करता, किन्तु उसके साहित्य में इन सब विश्वासों का उल्लेख मिलता है। लौकिक देवी-देवताओं को समाज में विशेष स्थान प्राप्त था। इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, मुकुन्द, शिव, वैश्रमण, नाग, यक्ष, भूत, आर्या और व्योहकिरिया मह का विशेष प्रचलन था। इनके अतिरिक्त वानमंतर, वामन्तरी, गुह्यक और पिशाचों की भी अर्चना की जाती थी। 304.प्राकृत साहित्य में लोक कला ___ लोक संस्कृति की वास्तविक पहचान लोक कला के माध्यम से होती है। लोक कलाओं के अन्तर्गत वे सभी कार्य विशेष परिगणित होते हैं, जिनमें लोक के मुक्त कलाकारों के सरल हृदय और प्रतिभा को अभिव्यक्ति मिलती है। विभिन्न अवसरों पर बनाई गई मिट्टी व काष्ट की मूर्तियां, विवाह आदि उत्सवों पर खींचे गई रेखानुकृतियां, मुक्त कंठों से गाया गया संगीत तथा विभोरकर देने वाली उछल-कूद आदि के अवशेष बहुत थोड़े बचे हों, किन्तु प्राकृत साहित्य में उनके जो उल्लेख मिलते हैं, वे लोककला की समृद्धि, लोकप्रियता के उद्घोषक हैं। तत्कालीन संगीत तथा नाट्यकला के लोकरूप दृष्टव्य हैं। __ संगीत के वाद्य, नाट्य, गेय और अभिनय के चार भेद बतलाये गये हैं। स्थानांगसूत्र में बड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैत और निषाद नामक सात स्वरों का उल्लेख है। इन स्वरों के स्वर स्थान, उच्चारण प्रकट, वाद्यों का सम्बन्ध, स्वरों से लाभ तथा गुण दोषों का भी वर्णन किया गया है। तत्, वितत्, धन और झसिर इन चारों प्रकार वाद्यों का न केवल उल्लेख है, अपितु उनके लगभग 5060 भेद प्रभेदों की भी चर्चा की गई है। कुछ वाद्य तो संस्कृत ग्रन्थों में उल्लिखित वाद्यों के समान हैं, किन्तु खरमुही, पीरिपिरिया, गौमुखी, तुंबबीणा, क्लशी, रिंगिसिया, लत्तिया, वाली, परिल्ली, वक्तगा आदि वाद्य नये हैं, जिनका सम्बन्ध प्रदेश विशेष के लोक वाद्यों से हो सकता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (5, पृष्ठ 413) में उक्खित्त (उक्षिप्त), पत्तम (पादात्त), मन्दय (मन्दक) और रोविंदय अथवा रोइया वसाण (रोचितावसान) इन चार प्रकार के गेय संगीत का उल्लेख है। सम्भवतः इन गेयों से शरीर की विभिन्न क्रियाओं के उत्क्षेपन, निपतन आदि द्वारा संगीत को प्रस्तुत किया जा रहा होगा। 2660 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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