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________________ आ जाने पर उसने अपना मंगलवलय बेच दिया इस प्रकार उस कुल वालिका के दयनीय दशा देखकर सारा गांव रो पड़ा। न मालूम गाँवों के पारिवारिक जीवन के ऐसे कितने चित्र इस साहित्य में उपलब्ध हैं। जन-जीवन को ज्यों का त्यों कथाओं में उतारकर रख दिया गया है। केवल एक उदाहरण पर्याप्त हैं। एक गरीब व्यक्ति का दैनिक-जीवन के प्रति चिन्तन दृष्टव्य है मेरे घर में पैसा नहीं है, और लोग उत्सव मनाने में लगे हैं, बच्चे मेरे रो रहे हैं, अपनी घर वाली को मैं क्या दूँ? कुछ भी तो नहीं मेरे पाम देने को। मेरे स्वजनसम्बन्धी अपनी समृद्धि में मस्त हैं, दूसरे धनी लोग भी तिरस्कार ही करते हैं, वे स्थान नहीं देते। आज मेरे घर में घी, तेल, नमक, ईंधन और वस्त्र कुछ भी नहीं है, तौनी (मिट्टी की कुठिया) भी आज खाली है, कुल कुटुम्ब का क्या होगा? घर में कन्या सयानी हो रही है, लड़का अभी छोटा है इसलिए धन कमा नहीं सकता। कुटुम्ब के लोग बीमार हैं और दवा लाने के लिए पास में पैसे नहीं हैं। घरवाली गुस्से से मुँह फुलाए बैठी है, बहुत से पाहुने घर में आये हुए हैं । घर पुराना हो गया है, वह चूता है सब जगह पानी गिर रहा है। मैं करूँ तो क्या करूँ? साहूकार कर्ज और मांगते हैं। कहाँ जाऊँ? साहित्य में इससे अधिक यथार्थ की अभिव्यक्ति और क्या होगी? प्राकृत के अन्य ग्रन्थों में ननद-भाभज, सास-बहू और देवरानी-जिठानी के झगड़े टंटों का सजीवन वर्णन मिलता है, जिसका लोकजीवन से हमेशा घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। 299. प्राकृत में रीति-रिवाज और उत्सव लोक-जीवन अनेक रीति-रिवाज से भरा होता है, जन्म से लेकर मृत्यु तक कई सामाजिक रीतियां निभानी पड़ती हैं। प्राकृत कथाओं में दोहद, पुत्रजन्म, विवाह, धार्मिक अनुष्ठान आदि अवसरों पर कई परम्पराएँ निभाने का उल्लेख मिलता है। गर्भकाल में दोहद का बहुत महत्त्व था, भिखारिन से लेकर पटरानी तक के दोहद पूरे किये जाते थे, दोहदों के विचित्र प्रकार उपलब्ध होते हैं। कोई फ्नी पति का मांस खाने का दोहद प्रगट कर उसके प्राण संकट में डाल देती थी तो कोई ऐसी भी पत्नी थी कि उससे पूछे जाने पर अपने दोहद में खाली पानी पीने की इच्छा व्यक्त की, जिससे गरीब पति को परेशान न होना पड़े। प्राकृत रत्नाकर 0261
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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