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पर्व उत्सव प्राकृत ग्रन्थों में अनेक उत्सवों और पर्वों के उल्लेख मिलते हैं। पुण्णभासिणी का उत्सव कौमुदी महोत्सव के नाम से मनाया जाता था । उज्जाणिया-महोत्सव एक प्रकार से वनभोज जैसा था । इट्ठगा नामक एक पर्व में सेवइयाँ बनायी जाती थीं। इसकी तुलना रक्षाबन्धन त्यौहार से की जा सकती है। खेत में हल चलाने के दिन भी पूजा की जाती थी और भात भी खिलाया जाता था । कुछ घरेलू त्यौहार भी मनाये जाते थे, जिनमें श्राद्ध, देवबलि प्रमुख थे। संखडि नाम से एक बड़ा सामूहिक भोज का आयोजन कर उत्सव मनाया जाता था। 300. प्राकृत साहित्य मैं लोकानुरंजन
लोक जीवन में मनोरंजन के साधन निराले होते हैं। बच्चों के अलग और प्रौढ़ो तथा वृद्धों के अलग। नागरिक जीवन में मनोरंजन के साधनों के अतिरिक्त प्राकृत साहित्य में लोकजीवन में व्यहत मनोरंजन के साधनों का भी उल्लेख मिलता है। पर्व - उत्सव के अतिरिक्त लोग विभिन्न प्रकार के खेल खिलौनों द्वारा अपना मनोविनोद करते थे। कुछ लोक खिलौनों के नाम इस प्रकार हैं- खुल्लय (एक प्रकार की कौड़ी कर्पदक) खट्टय ( लाख की गोली), अडोलिया (गिल्ली), तिन्दूस (गेंद), पोतुल्ल ( गुड़िया) और साडोल्लय (कपड़े की गुड़िया), सरयत (धनुष), गारहग (बैल का खेल), घटक (छोटा घड़ा बजाने आदि के लिए), डिडिस ओर चेलगोल (कपड़े की गेंद) आदि खिलौने बच्चों का मनोरंजन करते थे। कपड़े की गेंद का खेल गडा गेंद के नाम से आज भी बुंदेलखंड के गांवों में प्रचलित है । इन खिलौनों के अतिरिक्त मल्लयुद्ध, कुक्कटयुद्ध तथा मयूर-पोत युद्ध आदि मनोरंजन के प्रधान साधन थे । लोकजीवन इन्हीं के सहारे जीवन्त बना रहता था ।
301. प्राकृत सर्वस्व : मार्कण्डेय
प्राकृत व्याकरणशास्त्र का प्राकृत सर्वस्व एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके ग्रन्थकार मार्कण्डेय प्राच्य शाखा के प्रसिद्ध प्राकृत वैयाकरण थे। 1968 में प्राकृत टेक्स्ट सोयायटी अहमदाबाद से प्रकाशित संस्करण में मार्कण्डेय की तिथि 1490-1565 ई. स्वीकार की गयी तथा ग्रन्थकार और उनकी कृतियों के सम्बन्ध में विस्तार से विचार किया गया है। मार्कण्डेय ने प्राकृत भाषा के चार भेद किये
262 प्राकृत रत्नाकर