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2.किं न सम्भवन्ति लच्छिनिलयेसुकमलेसु किमओ-(समराइच्च 4,268)
क्या सुन्दर कमलों में कीड़े नहीं होते? 3. हत्थठियं कंकणयंको भण जोएह आरिसए? - (ज्ञानपंचमी कहा)
हाथ कंगन को आरसी क्या? 4.न हि गेहम्मि पलित्ते अवडं खणिउंतरइ कोई - (भव भावना)
घर में आग लगने पर क्या कोई कुँआ खोद सकता है? 296. प्राकृत साहित्य में ग्रामीण जीवन
प्राकृत कथाओं में प्रायः मध्यमवर्गीय पात्रों के लोक जीवन वातावरण में प्रस्तुत किया गया है, अतः ग्रामीण जीवन के विविध दृश्य इस साहित्य में देखने को मिलते हैं, उन्हें प्रमुख पांच भागों में विभक्त कर सकते हैं- (1) ग्राम्य वातावरण (2) पारिवारिक जीवन (3) रीति-रिवाज (4) त्यौहार-पर्व एवं (5) लोकानुरंजन । इनमें से प्रत्येक के कुछ दृश्य उपस्थित हैं. ग्राम्य वातावरण - गाहासत्तसई प्राकृत कृति गांवों के उल्लास और स्वतन्त्र जीवन का पूर्ण प्रतिनिधित्व करती है। एक गांव की सुबह का वर्णन देखें - प्रातःकाल होने पर गाय चरने चल देतीं,खोंचे वाले अपने व्यापार के लिए निकल पड़ते हैं, लुहार अपने काम में लग जाते हैं, किसान अपने खेतों में चले जाते हैं, माली फूलों की टोकरी ले गांव में निकल पड़ता है, राहगीर रास्ता चलने लगते हैं
और तेली कोल्हुओं में तेल पेरने लगते हैं। दूसरा वर्णन गांव में पड़े दुष्काल का है। बारह वर्ष तक अनावृष्टि हुई, उससे औषधियां नहीं पनपीं, वृक्ष नहीं फले, फसल व्यर्थ हो गई, पशुओं का चारा नहीं उगा। केवल पवन चलता रहा, धूल उड़ती रही, पृथ्वी कंपती रही, मेघ गरजते रहे, उल्काएं पड़ती रहीं। दिशाएँ गूंजती रहीं और बारह सूर्यों के तेज जैसा कठोर ताप वाली गर्मी पड़ती रही, वर्षा ऋतु में गांव में मूसलाधार पानी बरस रहा है।झोपड़ी में टप-टप पानी चूरहा है। किसान की पत्नी अपने प्यारे बच्चे को बचाने के लिए उस पर झुक कर पानी की बूंदें अपने सिर पर ले रही है, किन्तु अपनी दरिद्रता के लिए रोती हुई उसे नहीं पता कि वह अपने नयनों से झरते जल से बच्चे को भिंजो रही है।
प्राकृत रत्नाकर 0259