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________________ 25. अष्टपाहुड़ (अठ्ठपाहुडं) ___ अष्ट पाहुड (अष्ट प्राभृत) आचार्य कुन्दकुन्द के आठ संक्षिप्त ग्रन्थ हैं, परन्तु संकलन में एक साथ प्रकाशित होने के कारण अष्ट पाहुड के नाम से प्रसिद्ध हैं। दर्शनपाहुड में 36 गाथाओं में सम्यग् दर्शन की महत्ता का निरूपण करते हुए कहा गया है कि सम्यग् दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी नहीं हो सकता। चारित्रपाहुड में 44 गाथाओं में सम्यग् दर्शनादि रत्नत्रय का निरूपण करते हुए चारित्र के सम्यक्त्व का वर्णन किया है। सूत्रपाहुड की 27 गाथाओं में आगम ज्ञान के महत्त्व को बताते हुए उसके अनुसार आचरण की प्रेरणा दी गई है। बोधपाहुड में 62 गाथाओं में चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, जिनबिम्ब, आत्मज्ञान, प्रव्रज्या आदि का बोध दिया गया है। भावपाहुड की 163 गाथाओं में चित्त-विशुद्धि पर बल देते हुए कहा गया कि इसके बिना तप भी सिद्धि में सहायक नहीं हो सकता है। मोक्षपाहुड की 106 गाथाओं में आत्म-तत्त्व का विस्तार से विवेचन करते हुए बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा इन तीनों के स्वरूप को समझाया है। लिंगपाहुड में 22 गाथाओं में श्रमण के लिंग (चिन्ह) को लक्ष्य कर मुनिधर्म का निरूपण किया है तथा शीलपाहुड की 40 गाथाओं में शील की महत्ता को स्पष्ट कर उसे मोक्ष प्राप्ति में सहायक कहा है। इन प्रमुख ग्रन्थों के अतिरिक्त आचार्य कुन्दकुन्द के कुछ अन्य ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं। रयणसार में रत्नत्रय का विवेचन है। बारसाणुवेक्खा में बारह अनुप्रेक्षाओं का निरूपण किया है तथा भत्तिसंगहो में तीर्थंकरों एवं पंचपरमेष्ठी की स्तुति की गई है। . कुन्दकुन्द के षट्पाहुड में दंसणपाहुड, चरित्तपाहुड, सुत्तपाहुड, बोधपाहुड, भावपाहुड और मोक्खपाहुड नाम के छह प्राभृतों का अन्तर्भाव होता है। इनमें लिंग और सीलपाहुड मिला देने से आठ पाहुड हो जाते हैं। इन पर आचार्य श्रुतसागर ने टीका लिखी है। श्रुतसागर विद्यानन्दि भट्टारक के शिष्य थे और वे कलिकालसर्वज्ञ, उभय भाषाचक्रवर्ती आदि पदवियों से विभूषित थे। दंसणपाहुड की टीका में श्रुतसागर आचार्य ने गोपुच्छिक, श्वेतवास, द्राविड़, यापनीयक और निप्पिच्छ नामके पाँच जैनाभासों का उल्लेख किया है। सुत्तपाहुड में आचार्य कुन्दकुन्द ने नग्नत्व को ही मोक्ष का मार्ग बताया है। भावपाहुड में बाहुबली, 180 प्राकृतरत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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