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विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर डॉ. नेमिचन्द्रशास्त्री ने सट्टक की निम्न विशेषताओं की ओर संकेत किया है - 1. सट्टक में चार जवनिकाएँ होती हैं। 2. कथावस्तु कल्पित होती है और सट्टक का नामकरण नायिका के आधार पर होता है। 3. प्रवेशक और विष्कंभक का अभाव होता है। 4. अद्भुत रस का प्राधान्य रहता है। 5. नायक धीर ललित होता है। 6. पटरानी गम्भीरा और मानिनी होती है। इसका नायक के ऊपर पूर्ण शासन रहता है। 7. नायक अन्य नायिका से प्रेम करता है, पर महिशी उस प्रेम में बाधक बनती है।
अन्त में उसी की सहमति से दोनों में प्रणय-व्यापार सम्पन्न होता है। 8. स्त्री पात्रों की बहुलता होती है। १. प्राकृत भाषा का आद्योपान्त प्रयोग होता है। 10.कैशिकी वृत्ति के चारों अंगों द्वारा चार जवनिकाओं का गठन किया जाता है। 11.नृत्य की प्रधानता रहती है। 12.शृंगार का खुलकर वर्णन किया जाता है। 13.अन्त में आश्चर्यजनक दृश्यों की योजना की जाती है। 287. प्राकृत के व्याकरण ग्रन्थ विदेशों में
विदेशी विद्वानों ने प्राकृत के व्याकरण ग्रन्थों का विद्वत्तापूर्ण सम्पादन भी किया है। हल्टजश्च ने सिंहराज के प्राकृत रूपावतार का सम्पादन किया, जो सन् 1909 में लन्दन में छपा। इअसी समय पीटर्सन का वैदिक संस्कृत एण्ड प्राकृत, एफ. ई. पर्जिटर का चूलिका पैशाचिक प्राकृत, आर श्मिदित का एलीमेण्टर बुक डेर शौरसेनी, बाल्टर शुब्रिग का प्राकृत डिचटुंग उण्ड प्राकृत मैमेनीक, एल.डी. बर्नेट का ए प्ल्यूरल फार्मइनद प्राकृत आफखेतान आदि गवेषणात्मक कार्य प्राकृत भाषाओं के अध्ययन के सम्बन्ध में प्रकाश में आये। 250 0 प्राकृत रत्नाकर