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उत्कीर्ण वासिष्ठीपुत्र पुलुमावि का शिलालेख आदि भी प्राप्त होते हैं। इस प्रकार ईसा की चौथी शताब्दी तक के अनेक प्राकृत शिलालेख प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ एक पंक्ति के हैं तथा कुछ विस्तृत हैं। 286. प्राकृत सट्टक
___ भारतीय साहित्य की नाट्य परम्परा में सट्टक साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सट्टक साहित्य का सम्बन्ध प्रायः लोकजीवन की विविध प्रवृत्तियों से होता है। नृत्य द्वारा इसका अभिनय किया जाता है। इसका उद्देश्य लोकनृत्यों, चर्चरी, आश्चर्यजनक घटनाओं तथा शृंगार के विभिन्न आयामों द्वारा लोक अनुरंजन करना होता है।
सट्टक शब्द देशी है, जो बाद में संस्कृत में रूढ़ हो गया। सट्टक शब्द की विभिन्न परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं। कर्पूरमंजरी में सट्टक की परिभाषा इस प्रकार दी गई है -
सो सट्टओ त्ति भण्णइ दूरं जो, णाडिआई अणुहरइ। किं उण एत्थ पवेसअविक्कंभाइं न केवलं होति॥(1.6)
अर्थात् - सट्टक वह कहा जाता है, जो नाटिका का अनुसरण करता है, किन्तु इसमें प्रवेशक और विश्कम्भक नहीं होते हैं। यद्यपि आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र में सट्टक का उल्लेख नहीं किया था, परन्तु नाट्यशास्त्र के टीकाकार अभिनवगुप्त (10वीं शताब्दी) ने अपनी टीका में सट्टक को नाटिका के समान ही बताया है। 12वीं शताब्दी के आचार्य हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में सट्टक को परिभाषित करते हुए कहा है कि सट्टक नाटिका के समान होता है। इसमें प्रवेशक एवं विश्कम्भक नहीं होते हैं तथा सट्टक की रचना अकेले प्राकृत भाषा में ही होती है, नाटिका की तरह संस्कृत एवं प्राकृत दोनों में नहीं। आधुनिक विद्वानों में डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने चन्द्रलेखा सट्टक की प्रस्तावना में सट्टक को द्राविड़ भाषा का शब्द मानते हुए उसकी सुन्दर व्याख्या की है। उन्होंने नृत्य युक्त नाटकीय प्रदर्शन को सट्टक की संज्ञा दी है।
प्राकृत रत्नाकर 0 249