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________________ में, पर 7- अधिकरण सप्तमी 1- कर्ता कारक शब्द के अर्थ, लिंग, परिमाण, वचन मात्र को बतलाने के लिए शब्द संज्ञा, सर्वनाम आदि में प्रथमा विभक्ति होती है। प्रथमा विभक्ति वाला शब्द वाक्य में प्रयुक्त किया का कर्ता होता है। उसके बिना क्रिया का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। अतः कर्ता कारक शब्द क्रिया की सार्थकता बताता है। जैसे : महावीरो गामं गच्छदि, पोंग्गलो अचेयणो अत्थि। यहाँ गच्छ क्रिया का कर्ता महावीर है, अत्थि क्रिया का मूल सम्बन्ध पोंग्गल से है। महावीरो प्रथमा विभक्ति में होने से सूचित करता है कि महावीर पुल्लिंग संज्ञा शब्द है और एक वचन है। 2- कर्म कारक द्वितीया = को जो कर्ता को अभीष्ट कार्य हो, क्रिया से जिसका सीधा सम्बन्ध हो उसको व्यक्त करने वाले शब्द में कर्म संज्ञा होती है। कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। सामान्यतया किसी भी कर्ता-क्रिया वाले वाक्य के अन्त में 'किसको' प्रश्न क्रिया से जोड़ने पर कर्म की पहिचान हो जाती है। जैसे - ‘राम फल खाता है' यहाँ किसको खाता है? प्रश्न करने पर उत्तर में फल शब्द सामने आता है। अतः फल कर्मसंज्ञक है। इसका द्वितीया का रूप ‘फलं' वाक्य में प्रयुक्त होगा। जीवो घडं करेदि = जीव घड़ा बनाता है।, सो पडं ण करेदि = वह पट (कपड़ा) नहीं बनाता है। णाणी तवं धारयदि = ज्ञानी तप धारण करता है। सावको वंद गिण्हदि= श्रावक व्रत को ग्रहण करता है। द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (1) 'विना' के साथ -अणज्जो अणजभासं विणा गाहेदुं ण सक्कदि = अनार्य अनार्य भाषा के बिना ग्रहण करने में समर्थ नहीं होता। (2) 'गमन' के अर्थ में - सो उम्मगं गच्छंतं मग्गे ठवेदि = वह उन्मार्ग में जाते हुए को मार्ग में स्थापित करता है (3) 'श्रद्धा' के योग में - मोक्खं असद्धहंतो पाठो गुणं ण करेदि = मुक्त आत्मा पर अश्रद्धा करता हुआ कोई (शास्त्र) पाठ लाभ नहीं करता। प्राकृत रत्नाकर 0 241
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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