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ख , ह मुहं < मुखम् मेहला < मेखला घ > ह मेहो < मेघः जहणं ८ जघनम् थ - ह गाहा < गाथा णाहो ( नाथः ध , ह साहू < साधुः अहिअं < अधिकम् समाहि ( समाधि मणोरहा < मनोरथाः भ > ह सहावो ( स्वभावः सोहणं < शोभनम् ___ कभी-कभी उक्त वर्ण 'ह' में नहीं बदलते :पधाण > प्रधान सभाव ( स्वभाव
कहीं शौरसेनी में थ एवं ह को 'ध' होता है। यथा - नाथ > नाध यथा < जधा इह < इध
278. प्राकृत में संयुक्त व्यंजन विकास :
संयुक्त व्यंजनों का प्राकृत के दो रूपों में विकास दृष्टिगोचर होता है(1) प्रथम संयुक्त व्यंजन के एक व्यंजन को दूसरे व्यंजन के अनुसार बदल दिया गया तथा (2) दूसरे, उन दोनों संयुक्त व्यंजन के बीच में कोई स्वर लाकर उन्हें विभक्त कर दिया गया। जैसे- चक्र: > चक्को, काव्यम् > कव्वं एवं भार्या > भारिया, चौर्य चोरिअं आदि। इनके अतिरिक्त भी संयुक्त व्यंजनों का विकास प्राकृत में प्राप्त होता है। कतिपय उदाहरण इस प्रकार हैं1. क वर्ग के वर्गों में द्वित्व होने वाले संयुक्त व्यंजन : क्त ) ₹ तितं < तिक्त युक्तं < युक्तम् क्ष , ख खण र क्षण खीणं < क्षीणम्
खमा < क्षमा खीर र क्षीरम >क्ख इ
क्खू < इक्षुः लक्खणं लक्षणम् ष्क , क्ख पोक्खरं < पुष्करम् सुक्खं < शुष्कम् क्ष्ण > क्ख तिक्खं ८ तीक्ष्णम् स्त ख खम्भो र स्तम्भः
2340 प्राकृतरत्नाकर