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________________ > ल दोहलो दोहदः कलंबो ( कदम्ब न , ण कणयं( कनकम् मयणो < मदनः प ) व उववादेण (उपपादेन खवगार क्षपकाः भ , ह पह < प्रभा, सहावोर स्वभावः य ) ज संजदा < संयता तइजो र तृतीयः र ) ल सिढिलो < शिथिरः सोमालो ( सुकुमारः श ) स सलागो (स्लोकः सिवियाणं < शिविकानाम् दह (दश तेरह ( त्रयोदशः ष स कसायो र कषायः निहसोनिकषः पाहाणो < पासाणः सुण्हा < स्नुषा स > ह दिवहो < दिवसः 3. मध्यवर्ती सरल व्यंजन लोप-विधान : क लोप लोगो ८ लोकः तित्थगरो < तीर्थंकरः ग लोप णअरं र नगरम् साअरो र सागरः लोप आलोयण आलौचन पवयणं < प्रवचनं लोप गओ < गजः पआवई ( प्रजापतिः लोप चउव्विहं < चातुर्विधम् वणप्फदि < वनस्पति द लोप वअणं ( वदनम् वेअणा < वेदना लोप रिऊ < रिपुः विउलं < विपुलम् य लोप णअणं नयनम् वाउणा र वायुना व लोप दिअसो < दिवसः लाउण्णं < लावण्यम् नियम 7 : मध्यवर्ती सरल व्यंजनों के लोप के कुछ अपवाद है अर्थात् लोप नहीं होता। यथा- षटखण्डागम के ये उदाहरण - णयवादो, विचआ, भावकलंक, विजय, पवरवादो, वेदग, एक्को, सजोग नियम 8 : अनादि, सरल एवं स्वर से परे ख, घ, थ, ध और भ को प्रायः 'ह' आदेश होता है। यथा - प्राकृत रत्नाकर 0233
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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