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शाहवाजगढ़ी के अशोकी शिलालेखों से मिलता हैं। इनसे अनुमान होता हैं कि खरोष्ठी धम्मपद का मूल रूप भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में ही लिखा गया है। लिपि के आधार पर इसका समय ईसवी सन् 200 माना गया है।
266. प्राकृत पुष्करिणी
डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने अलंकार ग्रन्थों में उदाहरणों के रूप में प्रयुक्त गाथाओं का संकलन प्राकृत पुष्करिणी के नाम से किया है। अलंकार ग्रन्थों में जितने उदाहरण आये हैं, वे सभी एक से एक सुन्दर और सरस हैं। प्रत्येक पद्य अपने पीछे प्रबन्ध की परम्परा लिए हुए हैं। अतः इन मुक्तक पद्यों का अपूर्व सौन्दर्य है। प्रायः ये सभी पद्य श्रृंगार रस के हैं। इस संग्रह की अधिकाशं गाथाएँ गाथा सप्तशती की हैं । कुछ गाथाएँ नयी हैं। श्रृंगार रस के मर्म को समझाने के लिए ये गाथाएँ उपयोगी हैं।
267. प्राकृत भारती अकादमी - प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर एक स्वयंसेवी पंजीकृत संस्था है। इसकी स्थापना 21 फरवरी 1977 को हुई थी। अकादमी का मुख्य उद्देश्य प्राकृत, संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी में उपयोगी साहित्य का प्रकाशन है, जिससे कि यह साहित्य साधारण पाठक एवं विद्वानों तक पहुँच सके। प्राकृत भारती द्वारा अब तक 218 ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। इनमें से कई पुस्तकों के एकाधिक संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान मं लगभग 10 पुस्तकें प्रति वर्ष प्रकाशित की जाती हैं। प्राकृत भारती की गतिविधियों में नियमित प्राकृत भाषा पाठ्यक्रम चलाना भी है। पत्राचार द्वारा जैनालॉजी में एम. ए. की कक्षाओं का संचालन भी प्राकृत भारतीय अकादमी होता है । इस अकादमी के संचालन में प्रो. कमलचन्द्र सोगानी, पं. विनयसागर एवं श्रीमान् डी. आर. मेहता आदि विद्वानों का विशेष योगदान है।
268. प्राकृत भाषा
प्राकृत रत्नाकर 0223