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________________ का नियमन चौथे परिच्छेद के 33 सूत्रों में हुआ है। यथा 12वें सूत्र ‘मोविन्दुः' में कहा गया है कि अंतिम हलन्त 'म्' को अनुस्वार होता है - वक्षम् > वच्छं, भद्रम् , भदं आदि। पांचवे परिच्छेद के 47 सूत्रों में लिंग और विभक्ति का अनुशासन दिया गया है। सर्वनाम शब्दों के रूप और उनके विभक्ति प्रत्यय छठे परिच्छेद के 64 सूत्रों में वर्णित हैं। सप्तम परिच्छेद में तिङतविधि तथा अष्टम में धात्वादेश का वर्णन है। प्राकृत का धात्वादेश सम्बन्धी प्रकरण तुलनात्मक दृष्टि से विशेष महत्त्व का है। नवमें परिच्छेद में अव्ययों के अर्थ एवं प्रयोग दिये गये हैं। यथा-णवरः केवल ॥7॥- केवल अथवा एकमात्र के अर्थ में णवर शब्द का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ- एसो णवर कन्दप्पो, एसा णवर सा रई इत्यादि। यहाँ तक वररुचि ने सामान्य प्राकृत का अनुशासन किया है। इसके अनन्तर दसवें परिच्छेद के 14 सूत्रों में पैशाची भाषा का विधान है। 17 सूत्र वाले ग्यारहवें परिच्छेद में मागधी प्राकृत का तथा बारहवें परिच्छेद के 32 सूत्रों में शौरसेनी प्राकृत का अनुशासन है। प्राकृत व्याकरण के गहन अध्ययन के लिए वररुचिकृत प्राकृत प्रकाश एवं उसकी टीकाओं का अध्ययन नितान्त अपेक्षित है। महाराष्ट्री के साथ मागधी, पैशाची एवं शौरसेनी का इसमें विशेष विवेचन किया गया है। प्राकृत प्रकाश की इस विषयवस्तु से स्पष्ट है कि वररुचि ने विस्तार से प्राकृत भाषा के रूपों को अनुशासित किया है। चंड के प्राकृत लक्षण का प्रभाव वररुचि पर होते हुए भी कई बातों में उनमें नवीनता और मौलिकता है। 265. प्राकृत धम्मपद भारतेतर प्राकृत खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए खोतान में उपलब्ध प्राकृत धम्मपद का स्थान महत्वपूर्ण है। भारतीय हस्तलिखित प्रतियों में सर्वप्राचीन कही जाने वाली यह प्रति भाषा और लिपि की दृष्टि से अपना महत्व रखती है। इसमें 12 परिच्छेद हैं जिनमें 232 गाथाओं में बुद्ध-उपदेश का संग्रह हैं। इसकी भाषा उत्तर पश्चिमी प्रदेश की बोलियों से मिलती-जुलती है, जिसका परिचय हमें 222 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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