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________________ का प्रयोग मिलता है और साथ ही अनेक नये शब्दों के प्रयोग भी उपलब्ध हैं। इनका साहित्य जैनदर्शन और सिद्धान्त के साथ भूगोल और गणित की दृष्टि से भी उपयोगी है। __ आचार्य नेमिचन्द्र जैन सिद्धान्त साहित्य के बहुश्रुत एवं अद्वितीय विद्वान थे। इन्हें सिद्धान्तचक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त थी। ये कर्नाटक के गंगवंशीय राजा राचमल्ल के सेनापति चामुण्डराय के समकालीन थे। इनका समय लगभग 11वीं शताब्दी माना गया है। इन्होंने अनेक प्राकृत ग्रन्थों का प्रणयन कर जैन सिद्धान्त साहित्य की विस्तार से व्याख्या प्रस्तुत की है। इनकी निम्न रचनाएँ प्रसिद्ध हैं - 1. गोम्मटसार 2.त्रिलोकसार 3. क्षपणसार 4.लब्धिसार 5. द्रव्यसंग्रह गोम्मटसार दो भागों में है - जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड। इस ग्रन्थ के माध्यम से आचार्य ने षट्खण्डागम के विषय को सरलता से समझाने का प्रयत्न किया है। त्रिलोकसार करुणानुयोग का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसमें तीनों लोकों की रचना से सम्बन्धित सभी तथ्यों का निरूपण हुआ है। जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, मानुष क्षेत्र, भवनवासियों के लिए रहने के स्थान, आयु, परिवार आदि का विस्तार से विवेचन हुआ है। खगोल विज्ञान की दृष्टि से ग्रह, नक्षत्र, तारा, सूर्य, चन्द्र आदि की आयु, विमान, गति, परिवार आदि से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सामग्री भी इसमें विवेचित है। लब्धिसार में आत्मा की शुद्धि के लिए आवश्यक पाँच लब्धियों - क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण को प्राप्त करने की विधि का विस्तार से वर्णन हुआ है। क्षपणसार में कर्मों से विमुख होने की विधि का वर्णन है। द्रव्यसंग्रह जैन सिद्धान्त शास्त्र का 58 गाथाओं का संक्षिप्त ग्रन्थ है। इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल इन छः द्रव्यों का निरूपण किया गया है। सात तत्त्वों, ध्यान एवं मोक्ष-मार्ग का भी इसमें विवेचन हुआ है। यथा ध्यान का स्वरूप बताते हुए कहा गया है - मा चिट्ठह मा जंपह मा चिन्तह किंवि जेण होइ थिरो। अप्या अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे ज्झाणं॥...(गा. 53) अर्थात् - कुछ मत करो, कुछ मत बोलो, कुछ मत सोचो। जिससे आत्मा, आत्मा में स्थिर हो, यही परम ध्यान है। 158 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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