SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्ग, दकपथ, दकतीर, दकस्थान, शून्यगृह, शून्यशाला, भिन्नगृह, भिन्नशाला, कूटागार, कोष्ठागार, तृणगृह, तृणशाला, तुषगृह, छुसगृह, छुसशाला, पर्यायगृह, पर्यायशाला, कर्मान्तगृह, कर्मान्तशाला, महागृह, महाकुल, गोगृह, गोशाला आदि स्वरूप बताया गया है। एकादश उद्देश्य की व्याख्या में अयोग्य दीक्षा का निषेध करते हुए आचार्य ने 48 प्रकार के व्यक्तियों को प्रव्रज्या के अयोग्य माना है- 18 प्रकार के पुरुष, 20 प्रकार की स्त्रियाँ और 10 प्रकार के नपुंसक। इसी प्रसंग पर आचार्य ने 16 प्रकार के रोग एवं 8 प्रकार की व्याधि के नाम भी गिनाये हैं। शीघ्र नष्ट होने वाली पीड़ा व्याधि तथा देर से नष्ट होने वाला कष्ट रोग कहलाता है। अंतिम बीसवें उद्देश्य की व्याख्या के अन्त में चूर्णिकार के पूरे नामजिनदासगणि महत्तर का उल्लेख कियागया है तथा प्रस्तुत चूर्णि का नाम विशेषनिशीथचूर्णि बताया गया है। प्रस्तुत चूर्णि का जैन आचारशास्त्र के व्याख्याग्रन्थों में एक विशिष्ट स्थान है। इसमें आचार के नियमों के अतिरिक्त प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन पर प्रकार डालने वाली सामग्री की भी प्रचुरता है। अन्य व्याख्याग्रन्थों की भाँति इसमें भी अनेक कथानक उद्धृत किये गये हैं। इनमें धूर्ताख्यान, तरंगवती, मलयवती, मगधसेन, आर्यकालक एवं उनकी भगिनी रूपवती तथा उज्जयिनी के राजा गर्दभिल्ल आदि के वृतान्त उल्लेखनीय हैं। 208. नेमिचन्द्र आचार्य , शौरसेनी प्राकृत साहित्य के समर्थ लेखक आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती हैं। ये नेमिचन्द्र सेनापति चामुण्डराय के समकालीन थे। अतः इनका समय 11वीं शताब्दी (सन्1028) के लगभग निश्चित है। नेमिचन्द्र सिद्धान्त ग्रन्थों के प्रकाण्ड पंडित थे। उनकी ये रचनाएँ उपलब्ध हैं - 1. गोम्मटसार 2. त्रिलोकसार 3. लब्धिसार 4. क्षपणासार 5. द्रव्य संग्रह। आचार्य नेमिचन्द्र के इन ग्रन्थों में कर्मसिद्धान्त, जैनभूगोल, द्रव्य-विवेचन आदि का विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। इनके ग्रन्थों की शौरसेनी प्राकृत भाषा में परम्परा से प्राप्त प्राचीन शब्दावली प्राकृत रत्नाकर 0157
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy