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________________ एवं अन्य महान् तपस्वी, जिन्होंने घोर तपश्चरण कर निर्वाण प्राप्त किया है इस स्तोत्र में उल्लिखित हैं। 206.निशीथसूत्र (निसीहं) अर्धमागधी आगम साहित्य के छेदसूत्रों में निशीथसूत्र एक मानदण्ड के उनकी प्रायश्चित्त विधि की विशेष चर्चा की गई है।अनिवार्य कारणों से या बिना रूप में है। यह सूत्र अपवाद बहुल है। इसमें श्रमणाचार के अपवादिक नियमों एव कारण ही संयम की मर्यादा को भंग करके यदि कोई स्वयं आलोचना करके प्रायश्चित्त ग्रहण करे तो किस दोष का कितना प्रायश्चित्त होता है, यह इस छेद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। अतः यह छेदसूत्र हर किसी को नहीं पढ़ाया जाता है। निशीथसूत्र में 20 उद्देशक हैं, जिनमें चार प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन है। 19 उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान तथा 20वें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया का वर्णन है। निशीथ आचारांगसूत्र की पाँचवीं चूलिका ही है, किन्तु विस्तृत होने के कारण बाद में इसे निशीथ के नाम से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त इस सूत्र में पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, श्रमण-श्रमणी के आचार, गोचरी, भिक्षाचरी, कल्प, क्रिया आदि के नियमों, दोषों एवं उनके शुद्धिकरण के उपायों का वर्णन है। 207.निशीथ-विशेषचूर्णि जिनदासगणिकृत प्रस्तुत चूर्णि मूलसूत्र, नियुक्ति एवं भाष्य के विवेचन के रूप में हैं । इसमें संस्कृत का अल्प प्रयोग है । प्रारम्भ में पीठिका है, जिसमें निशीथ की भूमिका के रूप में तत्सम्बद्ध आवश्यक विषयों का व्याख्यान किया गया है। प्रारंभिक मंगल-गाथाओं में आचार्य ने अपने विद्यागुरू प्रद्युम्न क्षमाश्रमण को नमस्कार किया है। इसी प्रसंग पर उन्होंने यह भी बताया है कि निशीथ का दूसरा नाम प्रकल्प भी है। निशीथ का अर्थ है अप्रकाश अर्थात् अंधकार। अप्रकाशित वचनों के निर्णय के लिए निशीथसूत्र है। अष्टम उद्देश्य से सम्बन्धित चूर्णि में उद्यान, उद्यानगृह, उद्यानशाला, निर्याण, निर्याणगृह, निर्याणशाला, अट्ट, अट्टालक, चरिका, प्रकार, द्वार गोपुर, दक, दक 156 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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