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________________ 209. नेमिचन्द्रसूरि महावीरचरिय के रचयिता बृहद्गच्छ के आचार्य नेमिचन्द्रसूरि हैं । इनका समय विक्रम की 12वीं शती माना जाता है। इनकी छोटी-बड़ी 5 रचनाएँ मिलती हैं- 1. आख्यानमणिकोश ( मूलगाथा 52 ), 2. आत्मबोधकुलक अथवा धर्मोपदेशकुलक ( गाथा 22 ), 3. उत्तराध्ययनवृत्ति ( प्रमाण 12000 लोक ), 4. रत्नचूड़कथा (प्रमाण 3081 लोक) और 5. महावीरचरियं ( प्रमाण 3000 लोक) । प्रस्तुत रचना उनकी अन्तिम कृति है और इसका रचनाकाल सं. 1141 है । रचयिता के दीक्षागुरु तो आम्रदेवोपाध्याय थे पर वे आनन्दसूरि के मुख्य पट्टधर के रूप में स्थापित हुए थे। पट्टधर होने के पहले इनकी सामान्य मुनि अवस्था (वि. सं. 1129 के पहले) का नाम देविंद (देवेन्द्र ) था । पीछे उनके देवेन्द्रगणि और नेमिचन्द्रसूरि दोनों नाम मिलते हैं। 210. नेमिचन्द्रसूरि (देवेन्द्रगणि) रयणचूडरायचरिय के रचयिता नेमिचन्द्रसूरि (पूर्व नाम देवेन्द्रगणि) हैं जो बृहद्गच्छ के उद्योतनसूरि के प्रशिष्य और आम्रदेव के शिष्य थे। इस रचना का समय तो मालूम नहीं पर इन्होंने अपनी दूसरी कृति महावीरचरियं को सं. 1139 में बनाया था। इनकी अन्य कृतियों में उत्तराध्ययन- टीका (सं. 1129) तथा आख्यानमणिकोश भी मिलते हैं । इन्होंने रत्नचूड़कथा की रचना डंडिल पदनिवेश में प्रारम्भ की थी और चडावलिपुरी में समाप्त की थी। इसकी प्राचीन प्रति सं. 1208 की मिली है। इसकी ताड़पत्रीय प्रति चक्रेश्वर और परमानन्दसूरि के अनुरोध से प्रद्युम्नसूरि के प्रशिष्य यशोदेव ने सं. 1221 में तैयार की थी। 211. नेमिनाहचरियं 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ पर प्राकृत में तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं । प्रथम जिनेश्वरसूरि की है जो सं. 1175 में लिखी गई थी। दूसरी मलधारी हेमचन्द्र (हर्षपुरीय गच्छ के अभयदेव के शिष्य) की 5100 ग्रन्थाग्र प्रमाण ( 12वीं का उत्तरार्ध) है तथा तीसरी बृहद्गच्छ के वादिदेव सूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि कृत विशाल रचना है जिसका रचना संवत् 1233 है। यह गद्य-पद्यमय रचना 6 अध्यायों में विभक्त है। इसका ग्रन्थाग्र 13600 प्रमाण है । प्राकृत रत्नाकर 159
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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