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________________ पता निया प्रदेश (चीनी तुर्किस्तान) से प्राप्त लेखों की भाषा से पता चलता है, जो प्राकृत भाषा से मिलती-जुलती है। निया प्राकृत का अध्ययन डॉ. सुकुमार सेन ने किया है, जिससे ज्ञात होता है कि इन लेखों की प्राकृत भाषा का सम्बन्ध दरदी वर्ग की तौखारी भाषा के साथ है। अतः प्राकृत भाषा में इतनी लोच और सरलता है कि वह देश - विदेश की किसी भी भाषा से अपना सम्बन्ध जोड़ सकती है। 203. नियुक्ति साहित्य जैन आगम साहित्य पर सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में लिखी गई पद्यबद्ध टीकाएँ निर्युक्तियों के नाम से जानी जाती हैं। निर्युक्ति का अर्थ है एक सूत्र में विद्यमान अर्थ की व्याख्या करना । निर्युक्तियों की व्याख्या शैली निक्षेप पद्धति है। एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, किन्तु कौनसा अर्थ किस प्रसंग के लिए उपयुक्त है यही स्पष्ट करना, निर्युक्ति का उद्देश्य है। सही दृष्टि से शब्द के साथ अर्थ का सम्बन्ध स्थापित करना ही निर्युक्ति है। प्राकृत गाथाओं में लिखी गई ये निर्युक्तियाँ विषय का संक्षिप्त रूप से प्रतिपादन करती हैं । विषय का प्रतिपादन करने के लए तथा विवेच्य विषय को समझाने के लिए इन नियुक्तियों में अनेक दृष्टान्तों व कथानकों भी उपयोग किया गया है । व्याख्या साहित्य में निर्युक्तियाँ सर्वाधिक प्राचीन हैं। निर्युक्तिकार आचार्य भद्रबाहु माने गये हैं । ये भद्रबाहु अन्तिम श्रुतकेवली, छेदसूत्र के रचयिता भद्रबाहु से पृथक हैं । इन्होंने आगम संकलन काल (ई. सन् की चौथी पाँचवी शताब्दी के लगभग) से ही निर्युक्तियाँ लिखना प्रारम्भ कर दिया था। भद्रबाहु ने निम्न दस सूत्रों पर नियुक्तियों की रचना की है- 1. आवश्यक 2. दशवैकालिक 3. उत्तराध्ययन 4. आचारांग 5. सूत्रकृतांग 6. दशाश्रुतस्कन्ध 7. बृहत्कल्प 8. व्यवहार 9. सूर्यप्रज्ञप्ति 10. ऋषिभाषित । भद्रबाहु की इन निर्युक्तियों में श्रमणजीवन से सम्बन्धित सभी विषयों पर चर्चा हुई है। 204. निर्वाणलीलावतीकथा ( निव्वाण लीलावईकहा ) निर्वाण लीलावती कथा - ग्रन्थ वि.सं. 1082-1095 के मध्य लिखा गया था। इसके कर्त्ता जिनेश्वरसूरि हैं । मूल ग्रन्थ अनुपलब्ध है। इसका सार रूप संस्कृत में 154 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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