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________________ 199.निमित्तपाहुड निमित्तपाहुड शास्त्र द्वारा केवली, ज्योतिष और स्वप्न आदि निमित्तों का ज्ञान प्राप्त किया जाता था।आचार्य भद्रेश्वर ने अपने कहावली में और शीलांकसूरि ने अपनी सूत्राकृतांगटीका में निमित्तपाहुड का उल्लेख किया है। 200.नियमसारो नियमसार आचार्य कुन्दकुन्द की आध्यात्मिक रचना है। इसमें मिथ्यादर्शनादि को त्यागने तथा शुद्धभाव में स्थित आत्मा की आराधना का कथन किया गया है। इस ग्रन्थ में 186 गाथाएँ हैं, जो 12 अधिकारों में विभक्त हैं। नियम का अर्थ है - मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ।इस दृष्टि से इस ग्रन्थ में सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग कहा है - सम्मत्तणाणचरणे जो भत्तिं कुणइसावगो समणो। तस्स दुणिव्बुदिभत्ती होदित्ति जिणेहि पण्णत्तं ॥...(गा. 134) अर्थात् – जो श्रमण या श्रावक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की भक्ति करता है, वह निश्चित रूप से निर्वाण की भक्ति होती है। ऐसा जिनेन्द्रों द्वारा कहा गया है। 201.निरयावलिया निरयावलिका का अर्थ है नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन करने वाला सूत्र । पूर्व में इस अर्धमागधी आगम ग्रन्थ में 1 श्रुतस्कन्ध, 52 अध्ययन एवं पाँच वर्ग थे तथा इसमें निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा, इन पाँच उपांगों का समावेश था, किन्तु वर्तमान समय में ये पाँचों उपांग पृथक-पृथक रूप में स्वीकृत हैं । वर्तमान में निरयावलिका में दस अध्ययन हैं। इसके दस अध्ययनों में काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह एवं महासेनकण्ह के जीवन-चरित का वर्णन है। ये सभी कुमार राजा श्रेणिक के पुत्र तथा कूणिक (अजातशत्रु) के भाई थे। यह उपांग ऐतिहासिक वर्णनों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। 202.निया प्राकृत प्राकृत भाषा का प्रयोग भारत के पड़ोसी प्रान्तों में भी बढ़ गया था इस बात का प्राकृत रत्नाकर 0 153
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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