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________________ सके। प्रमुख रूप से महाराष्ट्री, शौरसेनी, जैन-शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, जैन-महाराष्ट्री, पैशाची, चूलिका-पैशाची एवं अपभ्रंश का अनुशासन इस ग्रन्थ में किया गया है। भाषा-विज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों का भी इसमें विवेचन किया गया है। 16. अर्धमागधी कोश ____ यह कोश-ग्रन्थ शतावधानी मुनि रत्नचन्द्रजी द्वारा ई. सन् 1923-1938 में पाँच भागों में रचा गया है। यह महत्त्वपूर्ण कोश संस्कृत, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी इन चार भाषाओं में संकलित है। इसमें यथास्थान शब्दों के लिंग, वचन आदि का भी निर्देश किया गया है। शब्दों के साथ मूल संक्षिप्त उद्धरणों का भी समावेश है। आगम-साहित्य के साथ-साथ विशेषावश्यकभाष्य आदि ग्रन्थों के शब्दों का भी इसमें संकलन है। 17. अर्धमागधी प्राकृत भगवान महावीर ने अर्धमागधी में उपदेश दिये थे- भगवंचणंअद्वमागहीए भासाए धम्माइक्खइं- समवायांगसूत्र । किन्तु उस समय अर्धमागधी और आज के उपलब्ध साहित्य की अर्धमागधी में स्पष्ट अन्तर है, जो स्थान और समय के अन्तराल का प्रभाव है। जैन आगमों की भाषा को अर्धमागधी कहा गया है। इसे 'ऋषिभाषा तथा आर्ष भाषा भी माना गया है, जो इसकी प्राचीनता का द्योतक हैअसिसवयणां सिद्धं देवाणं अद्धमागहा वाणी-काव्यालंकार (2-12)। वैयाकरणों ने अर्धमागधी की स्वतन्त्र उत्पत्ति बतलाते हुए उसके लिए व्याकरण के नियमों की आवश्यकता नहीं बतलायी। अतः इस आर्ष भाषा के अपने स्वतन्त्र नियम हैं। जिस प्रकार बौद्धों ने मागधी भाषा को सब भाषाओं का मूल माना है, वैसे ही जैनों ने अर्धमागधी को अथवा वैयाकरणों ने आर्षभाषा को मूलभाषा स्वीकार किया है, जिससे अन्य भाषाओं और बोलियों का उद्गम हुआ है। जैन आगमों की भाषा का नाम अर्धमागधी क्यों पड़ा यह इसकी व्युत्पत्ति से स्पष्ट हो जाता है। कुछ लोगों का मत है कि इसमें अर्धांश मागधी भाषा है इसलिए इसे अर्धमागधी कहा गया है, किन्तु अर्धमागधी का यह अर्थ नहीं है। प्राचीन आचार्यो ने मगध के अर्धांश भाग में बोली जाने वाली भाषा की अर्धमागधी 80 प्राकृत रत्नाकर .
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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