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विनोदात्मक ढंग से रामायण महाभारत और पुराणों की अतिरंजित कथाओं पर व्यंग्य करते हुए उनकी असार्थकता सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। हरिभद्र एक कुशल कथाकार थे। हास्य और व्यंग्य की इस अनुपम कृति से उनकी मौलिक कल्पनाशक्ति का पता लगता है । यह महाराष्ट्री प्राकृत में सरल और प्रवाहबद्ध शैली में लिखी गई है। इसमें पाँच आख्यान हैं। एक बार उज्जैनी के किसी उद्यान में पाँच धूर्त शिरोमणि - मूलश्री, कंडरीक, एलाषाढ, शश और खंडपाणा एकत्रित हुए। उन्होंने निश्चय किया कि सब लोग अपने अपने अनुभव सुनायें और जो इन अनुभवों पर विश्वास न करे वह सबको भोजन खिलाये, और जो अपने कथन को रामायण, महाभारत और पुराणों से प्रमाणित कर दे, वह धूर्तो का गुरु माना जाये ।
आचार्य हरिभद्र की धूर्त्ताख्यान लाक्षणिक शैली में लिखी गई व्यंग एवं उपहास प्रधान रचना है। इस कथा-ग्रन्थ में आचार्य ने पाँच धूर्तों के काल्पनिक एवं असंभव आख्यानों के माध्यम से अविश्वसनीय तथा असंभव बातों की मनोरंजक प्रस्तुति करते हुए उनके निराकरण का सशक्त प्रयास किया है। वस्तुतः सरस शैली में व्यंग एवं सुझावों के माध्यम से असम्भव एवं मनगढ़ंत बातों, अन्धविश्वासों, अमानवीय तत्त्वों, जातिवाद आदि को त्यागने का संदेश दिया है। पाँच धूतों के आख्यानों में अंत में स्त्री खंडपाना की विजय दिखाकर नारी के अन्नपूर्णा रूप के साथ-साथ बौद्धिक रूप को भी दर्शाया है। प्राचीन भारत में गिरे हुए नारी - समाज को उठाने का यह सुन्दर प्रयास है।
आचार्य हरिभद्र ने धर्मकथा का एक अद्भुत रूप आविष्कृत किया है जो धूर्ताख्यान के रूप में भारतीय कथा - साहित्य में विचित्र कृति है। इसमें बड़े विनोदात्मक ढंग से रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरंजित चरित्रों और कथानकों पर व्यंग्य करते हुए उन्हें निरर्थक सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। यह प्रचुर हास्य और व्यंग्य से परिपूर्ण रचना है। इसमें 480 के लगभग प्राकृत गाथाएँ हैं जो पाँच आख्यानों में विभक्त हैं । यह सम्पूर्ण कृति सरल प्राकृत में लिखी गई है।
कथावस्तु उज्जैनी के उद्यान में धूर्तविद्या में प्रवीण पाँच धूर्त अपने सैकड़ों
146 D प्राकृत रत्नाकर
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