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अनुयायियों के साथ संयोगवश इकट्ठे हुए। पाँच धूतों में 4 पुरुष थे और एक स्त्री। वर्षा लगातार हो रही थी और खाने-पीने का प्रबन्ध करना कठिन प्रतीत हो रहा था। पाँचों दलों के मुखियों ने विचार-विमर्श किया। उनमें से प्रथम मूलदेव ने यह प्रस्ताव किया कि हम पाँचों अपने-अपने अनुभव की कथा कहकर सुनायें। उसे सुनकर दूसरे अपने कथानक द्वारा उसे सम्भव करें। जो ऐसा न कर सके और आख्यान को असम्भव बतलावे, वही उस दिन समस्त धूर्तो के भोजन का खर्च उठावे। मूलदेव, कंडरीक, एलाशाढ़, शश नामक धूर्तराजों ने अपने-अपने असाधारण अनुभव सुनाये, उनका समर्थन भी पुराणों के अलौकिक वृत्तान्तों द्वारा किया। पाँचवा आख्यान खंडपाना नाम की धूर्तनी का था। उसने अपने वृत्तान्त में नाना असम्भव घटनाओं का उल्लेख किया, जिनका समाधान क्रमशः उन धूर्ती ने पौराणिक वृत्तान्तों द्वारा कर दिया, फिर उसने एक अद्भुत आख्यान कहकर उन सबको अपने भागे हुए नौकर सिद्ध किया तथा कहा कि यदि उस पर विश्वास है तो उसे सब स्वामिनी मानें और विश्वास नहीं तो सब उसे भोजन (दावत) दें तभी वे सब उसकी पराजय से बच सकेंगे। उसकी इस चतुराई से चकित हो सब धूर्ता ने लाचारी में उसे स्वामिनी मान लिया। फिर उसने अपनी धूर्तता से एक सेठ द्वारा रत्नमुद्रिका पाई और उसे बेचकर एवं खाद्य सामग्री खरीद कर धूर्तो को आहार कराया। सभी धूर्तों ने उसकी प्रत्युन्नमति के लिए साधुवाद किया और स्वीकार किया कि पुरुषों से स्त्री अधिक बुद्धिमान होती है। इस ध्वन्यात्मक शैली द्वारा लेखक ने असंभव, मिथ्या और कल्पनीय बातों का निराकरण कर स्वस्थ, सदाचारी और संभव आख्यानों की ओर संकेत किया है। 192.ध्वन्यालोक
ध्वन्यालोक के कर्ता आनंदवर्धन कश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा के सभापति थे। इनका समय लगभग 9वीं शताब्दी का उत्तरार्ध माना गया है। इस ग्रन्थ में ध्वनि को ही काव्य की आत्मा स्वीकार किया गया है। इस ग्रन्थ पर अभिनवगुप्त ने टीका लिखी है। मूल ग्रन्थ एवं टीका दोनों में मिलाकर प्राकृत की लगभग 46 गाथाएँ प्राप्त होती हैं।
प्राकृत रत्नाकर 0147